नियति का खेल निरंतर चलता.

बिन मौसम बरसात न अच्छी,लगती कभी किसीको।

समय,परिवेशानुकुल ही,भाता सब कुछ,सब ही को ।।

 

खुशी ब्यक्तका अलग तरीका,गमका अलग हुआ करता

जश्न मनाते लोग खुशी में,गम में जश्न नहीं मनता।।

 

जय की खुशियों जयकार लगाते, शंखनाद भी होता ।

पर कभी पराजय या कोई गममें,नहीं कभी ऐसा होता।

 

समयानुसार ही सब कुछ अच्छा,भोर भैरवी ही भाता।

राग अनेकों,पर मल्हार तो,बारिश को ले है ले आता।।

 

यों मौसम तो अन्य कयी , पर बसंत सबों को भाता ।

कोयल की कूक तो मन मानसमें, रंग नया भर देता ।।

 

फूल बिछे होते अवनी पर,यह समां बसंत ला देता ।

भवंरों की गुंजार कुसुम को, आह्लादित कर देता ।।

 

हर मौसम रंग अपना लेकर, अवनी पर है आता ।

अपना अपना रंग दिखाता,और चला खुद जाता ।।

 

जाड़ा ,गर्मी, बारिश सब ही , नियत समय पर आते ।

अपना गुण दिखला लोगों पर,स्वत:चले भी जाते ।।

यही नियति का खेल निरंतर,जग में चलता रहता।

नियत समय से सारा मौसम, आता जाता रहता।।

जहां समय में गड़बड़ होता, होता दुखदाई है।

कष्ट सभी जीवों को होता ,न होता सुखदाई है।।

मौसम तो सब ही अच्छे, भारतवर्ष में अपना ।

देव तरसते जो ज्ञानी हो, लें पुनर्जन्म यहीं अपना।।

 

 

 

 

 

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