जिंदगी एक आस है

जिंदगी एक आस है, ‘अपने ‘ होने का विश्वास है।
साँस है, उच्छ्वास है, एक खुशनुमा अहसास है।।

जिंदगी एक राह है , कुछ पा जाने की चाह है।
कोई मिल पाए, इन्तजार है, गर न मिले, बेकरार है।।

जिंदगी एक रजा है, पल-पल में सुख- दुःख रचा है।
मानो तो कण-कण राम है, वरना सभी निष्प्राण है।।

जिंदगी कभी भूल है , दुःख से भरा, एक शूल है।
कांटो से सजा हार है , मुश्किल भरा उपहार है।।

पर जिंदगी एक आहट है, प्रिय मिलन की चाहत है।
दुःख लाख हो, पर आस है, खुशियाँ आएँगी, विश्वास है।।

जिंदगी एक आस है, ‘अपने ‘ होने का विश्वास है….

In loving remembrance of babuji ❤🙏

यादें

सोचता हूँ , कौन है, वो दूर खड़ा ,क्षीण सा .
कमजोर सा दिखता कोई , मेरी तरफ है देखता ..
जैसे मुझे पहचानता , वर्षों से मुझको जानता .
आँखों में जैसे आस हो , अपनत्व सा , विश्वास हो ..
मन में भरती उलझनें , लगता वो अपना ही कोई .
पास जा जब देखता , बस शून्यता पाता वहाँ ..
बस चंद यादें सी मेरी, जो जिंदगी को खींचता .
मुश्किल भरे इस जीवन को, नित नई ऊर्जा से सींचता ..

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राकेश कुमार
(पुत्र स्व. श्री सच्चिदानंद सिन्हा)

किसको सुनाऊँ दर्द अपना

सच्चिदानन्द सिन्हा

किसको सुनाऊँ दर्द अपना, कौन सुनना चाहता।
जख्म-ए-जिगर किसको दिखाऊँ,न देखना कोई चाहता।।

दुनियाँ बडी़ अजीब है, अजीब से सबलोग हैं।
अच्छे दिनों मे साथ था जो, दुर्दिन में दूर भागता।।

समझूँ किसे मैं मीत अपना, अक्सर यही मैं सोंचता।
नजरें घुमा हर ओर देखूँ, मिलता न वो, जिसे खोजता।।

चैन से रहता न दिल, बेचैनियों से जूझता।
सूकून मिलता है नहीं, बेसब्र रहता ढूढ़ता।।

छाया भी अपनी छोड़ देती साथ, सब ये जानता।
फिर भी विवश है दिल मेरा, नादाँ नहीं ये मानता।।

जा रही बढ़ती कसक, दिन दुनीं, रातें चौगुनी।
रोके न हम से रूक सके, बेदर्द दिल नहीं मानता।।

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Missing you, Babu ji

It has been two long years when you left us all on 24th December, 2020. Not a day has since gone, when we didn’t miss you…….many a times, I feel that you are there with me, calling me……I see around, but how could I find you!

The last conversation that we had and that I keep closest to my heart as an eternal blessing to me is that love-filled smile on your face, when you saw me on the video call on the day before you were taken to the hospital in Patna.

After you departed, my maaji also left us all to accompany you there……within a very short time of about 17 months, after a long battle for life in the hospital. Perhaps she wanted to reunite with you there in the heaven early. On that fateful day in May this year, when maaji left us all, when I could see her lying in the ICU bed, she was not able to even speak, when I was holding her hand, I could feel the unconditional love and unlimited blessings to me in her eyes and when her hand gently press mine. That love and blessings are now fuel for my life, this keeps me going ahead with a definite feeling that somehow, hands of my babuji and maaji are still there on my head. You blessings keep giving me strength to move ahead!

Pranam Babuji and Maaji

Missing you,

Aapka beta 🙏🙏🙏

भारत माँ के वीर जवानों

सच्चिदानन्द सिन्हा

ऐ सरहद पर लड़ने वालों,भारत माँ के वीर जवानों।
गर्व देश करता है तुम पर, ऐ भारत के सच्चे रखवालों।।

चाहे सर्दी का तीक्ष्ण दंत हो , या गर्मी से तपती धरती ।
बारिश से जलमग्न मही हो,या मरूभूमि हो आग उगलती।

नहीं फर्क पड़ता है तुम पर, उल्टे मौसम के चालों से ।
लौट विघ्न वापस जाते, डर कर तुम सा मतवालों से।।

रोके भी रोक न पाये कोई, तेरे बढ़ते ठोस कदम को ।
कफन बाँध रखा जो सर पर, ऐसे पावन वीर व्रती को ।।

मस्त शेर सा सरहद पर ,दिन रात तूँ गश्त लगाते हो ।
नजर अगर आ जाये दुश्मन, झट से मार गिराते हो ।।

सारे सुख-वैभव त्याग डटे , रहते दिन- रात हो ऐसे ।
सिंह द्वार पर डटे सदा, रहते उन शेरों जैसे ।।

मत कर चिन्ता, दिन-रात तुम्हें, दुआएं हम देते हैं ।
तेरे पथ के चरण-धूल का, तिलक सभी करते…

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श्री हनुमान कथा

सच्चिदानन्द सिन्हा

श्री हनुमान कथा

श्री रामभक्त, श्री हनुमान की गाथा गाता हूँ ।

आज पवनसुत हनुमान की कथा सुनाता हूँ ॥

अंजनीपुत्र थे केशरीनंदन, पवनपुत्र हनुमान।

भान न थी अपनी शक्ति की, न था उसका अभिमान॥

भूख लगी, तब आसमान में देखा सूरज लाल।

खाद्य समझ कर दौड़ पड़े, गए निगल समझ फल लाल॥

अंधकार छा गया जगत में, हुये सब जीव-जन्तु बेचैन।

वज्रास्त्र चलाया इंद्र, हुये बेहोश बाल हनुमान॥

खबर मिली जब पवन देव को, बेटे का हालत जाना।

हो गए कुपित, गुस्से में आ, प्रलय करने को ठाना॥

रुक गया पवन, थम गया समय, जो जैसे थे, सब रह गए।

अचल, सभी मूरत हों जैसे, बन कर मानो रह गए॥

हुये विकल सब देवगण, हुआ विकल पूर्ण संसार।

त्राहिमाम सब ओर मची, फिर ब्रह्मा  किए विचार॥

देवगण जा विनय करो, तुम पवन देव के पास।

मुक्ति वही दिला सकते, कोई न दूसरा आस॥

पवन देव के पास पहुँच, सब…

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अद्भुत, प्यारा मेघालय

सच्चिदानन्द सिन्हा

आयें थोडा़ हम अपना, एक राज्य भ्रमण कर आयें।

भारत का छोटा राज्य एक, दर्शन इसका करवायें ।।

असम राज्य का टुकड़ा एक, मेघालय राज्य बना है।

पर्वत खासी, गारो, जैंतिया, हरियाली बड़ा घना है।।

आच्छादित मेघों से रहता , मेघालय कहलाया ।

गुण के ही अनुरूप राज्य का , सुन्दर नाम धराया।।

सुन्दरता की बात न पूछें, स्वर्ग इसे कह सकते ।

लिये गोद में इसे हिमालय, मन देख इसे ना थकते।।

नयनाभिराम हर ओर दृश्य , मनमोहक है, प्यारा ।

ऊँची- नीची घाटियाँ, लगते कितने न्यारा ।।

राजधानी शिलाँग बनी , है शहर लघु, पर सुन्दर ।

स्वच्छता हर ओर यहाँ, गन्दगी न दिखे कहीं पर।।

हर मौसम में बदरी आ , करते रहते अठखेली ।

खेल रहे हों लुकाछिपी, मानों बच्चों की टोली।।

सड़कें लगती, सागर मेंं , उठती हो जैसे भाटा ।

गाड़ी आती दिखती जैसे, कश्ती कोई तैरता आता।।

छोटे -छोटे घर के उपर …

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मैं भी काश परिंदा होता!

सच्चिदानन्द सिन्हा

उड़ता-फिरता मदमस्त पवन में,नीले-ऊँचे, उन्मुक्त गगन में।

बहुत दूर, दृष्टि से ओझल, हो जाता मैं लुप्त, मगन मे ।।

पर्वत की चोटी पर उड़ जाता, जा मस्ती में खेल रचाता।

कोलाहल से बहुत दूर, नीरवता का लुत्फ उठाता ।।

नीचे धरती, नदियाँ-नाले , खेतों में फसलें लहराते ।

जंगल में जो निर्झर का जल, मधुर ध्वनि अनवरत सुनाते।।

सन-सन जंगल का सन्नाटा, सागर का भी उठता भाटा।

सब उड़कर मैं देखा करता, मैं भी काश परिंदा होता!!

फिक्र न होता महलों का, गावों – कस्बों या शहरों का।

गम धन-दौलत का तनिक नहीं, ना भय चोर-लफंगों का।।

उधर जाऊँ या जाऊँ जिधर,अपनी मर्जी उड़ूँ उधर।

नहीं पूछने वाला कोई, क्यो जाते हो इधर-उधर ।।

सच ही होता मैं बंजारा, चंचल, नटखट, इक आवारा।

आज इधर, कल रहूँ किधर, खुद नहीं पता उड़ जाऊँ कहाँ।।

घर है मेरा जल-जंगल, मैं रहूँ, वहीं मंगल रहता।

मुझे फिक्र न रहने का होता, मैं…

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नीर ,नयन या बदली का

सच्चिदानन्द सिन्हा

नीर भरी बदली और तेरी ,नयनों में क्या फर्क रहा।

दोनों ही जल बरसा देती, जब भी उनका जी चाहा।।

तुम दोनों जीवनदाता हो, बिन दोनों जीवन कैसा।

नहीं रहे दोनों में कोई, कमी खलेगी तब कैसा।।

नीर ,नयन बिन जीवन का, क्या संभव है बचना ।

नयन बिना जीवन दुष्कर,पर जल बिन बचेगा कितना।।

जल बरसाते हैं दोनों ही, पर भेद अलग दर्शाता है।

बरस मेघ खुद जीवन देता,आंसू ग़म बतलाता है।।

काम अहम दोनों का रहता, जीवन दोनों से चलता है।

कमी किसी का गर हो जाये, जीवन दूभर हो जाता है।।

दोनों ही नीर हुआ करते, पर कर्म अलग दोनों का।

एक नयन का रक्षक है, एक सकल जीवन का ।।

पर महत्व दोनों का अपना, दोनों ही धर्म निभाते हैं।

निरत रहें दोनों कर्मो में, ‘कर्म ही धर्म’ बताते हैं।।

दोनों हैं वरदान प्रकृति के, जीव-जंतु सबके खातिर।

मुफ्त बाॅटती रहती खुद, सबके जीवनरक्षण खातिर।।

आभारी…

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