यादें

सोचता हूँ , कौन है, वो दूर खड़ा ,क्षीण सा .
कमजोर सा दिखता कोई , मेरी तरफ है देखता ..
जैसे मुझे पहचानता , वर्षों से मुझको जानता .
आँखों में जैसे आस हो , अपनत्व सा , विश्वास हो ..
मन में भरती उलझनें , लगता वो अपना ही कोई .
पास जा जब देखता , बस शून्यता पाता वहाँ ..
बस चंद यादें सी मेरी, जो जिंदगी को खींचता .
मुश्किल भरे इस जीवन को, नित नई ऊर्जा से सींचता ..

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राकेश कुमार
(पुत्र स्व. श्री सच्चिदानंद सिन्हा)

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