किसको सुनाऊँ दर्द अपना

किसको सुनाऊँ दर्द अपना, कौन सुनना चाहता।
जख्म-ए-जिगर किसको दिखाऊँ,न देखना कोई चाहता।।

दुनियाँ बडी़ अजीब है, अजीब से सबलोग हैं।
अच्छे दिनों मे साथ था जो, दुर्दिन में दूर भागता।।

समझूँ किसे मैं मीत अपना, अक्सर यही मैं सोंचता।
नजरें घुमा हर ओर देखूँ, मिलता न वो, जिसे खोजता।।

चैन से रहता न दिल, बेचैनियों से जूझता।
सूकून मिलता है नहीं, बेसब्र रहता ढूढ़ता।।

छाया भी अपनी छोड़ देती साथ, सब ये जानता।
फिर भी विवश है दिल मेरा, नादाँ नहीं ये मानता।।

जा रही बढ़ती कसक, दिन दुनीं, रातें चौगुनी।
रोके न हम से रूक सके, बेदर्द दिल नहीं मानता।।

किसको सुनाऊँ दर्द अपना&rdquo पर एक विचार;

टिप्पणी करे