मधुमास न जाने पाये

संग में लेकर रंग-गुलाल की, बारिश कहाँ से आयी है ।
यह बासन्ती छटा कहाँ से , ले धरती पर आई है ??

जिधर देखिये ,रंग -बिरंगे , पुष्प मही पर छायी है ।
भंवरों की गुंजन मधुर, वाटिका में कैसे भर आयी है??

कोयल की कूक से बाग बगीचा, में मस्ती भर आई है।
मंजर बागों के पेडो से , मधुर मादकता छायी है ।।

स्वर्गलोक की पुष्प वाटिका , क्या धरती पर आई है?
जानें जिज्ञासा क्या ले इस, कर्म -भूमि पर आई है ।।

जिधर देखिये पुष्प दिखेगें , सुन्दरता हर ओर दिखेगी।
मन मोहक रंगों गंधों से , भरी सी चमन बहार दिखेगी।।

जीवन की इस बगिया में , खुशियाँ सदा बेअंत रहे ।
प्रफुल्लित रहे जन जीवन सारे, छाया सदा बसंत रहे ।।

बना रहे यह मौसम हरदम , फूलों से जीवन सजा रहे।
मधुमास न जाये हमें त्याग, मधुपों का गुंजन सदा रहे ।।

ऐ बनमाली ,जगत नियंता , ध्यान सदा देते रहना ।
हटे न सिर से तेरी साया , कृपा सदा करते रहना ।।

“बसंत नहीं आता ” कहते हैं , “ले आया जाता है ” ।
मन में बसंत की खुशियाँ सारी, बसा लिया जाता है।।

सारे उमंग को अपनें दिल में , प्रेमपूर्ण बसा लें ।
नहीं बसंत जा पायेगा , ऐसी एक समाँ बना लें ।।

यह गुलदस्ता फूलों का , ले कर बासन्ती आई है ।
सौगात लिये मधुमास धरा पर,मस्ती बन कर छायी है।।

चल अपनी राहों पर

राही चल अपनी राहों पर ,जितना चल सकते तुम ।
ध्यान सदा ही रखना , कहीं भटक नहीं जाना तुम ।।

चौराहे पर खडे़ हुए हो , यह जीवन का चौराहा है ।
चयन तुझे ही करना है पथ ,किन राहों पर जाना है।।

राह यहाँ से बहुत निकलते, अलग जगहों पर जाने का।
जिसने पकड़ा जो मार्ग , बस वहीं पहुँच जाने का ।।

इसी जगह से मार्ग निकल कर , सभी दिशा में जाते हैं।
जिसने जो पकडा मार्ग यहाँ से, वहीं पहुँच वे जाते हैं ।।

अपने विवेक से चयन मार्ग कर, जो तुमने पाया है ।
दे कर विवेक ही तुमको भेजा , जिसनें भी तुझे बनाया है।

हर मानव अपनी किस्मत का , खुद ही तो है निर्माता ।
देर सबेर उसे एक दिन , गणतब्य अवश्य है मिल जाता।।

पथभ्रमित पथिक अपनी राहों से, गणतब्य नहीं पाते हैं।
कहीं सोंच कर चलते पर, कहीं और पहुँच जाते हैं ।।

दोषी खुद हों ,पर दोष न लेते,अन्य किसी के सर चढ़ते ।
जीवन में जन साधारण , सदा ही यही किया करते ।।

महसूस जो करते स्वयं भूल को, प्रायश्चित करते हैं ।
बाल्मिकी और कालिदास की , श्रेणी में रहते हैं ।।

भूल कभी भी हो जाये तो ,मानव का स्वभाव रहा है ।
किये चूक महसूस करे , ऐसों का सदा अभाव रहा है।।

सदा चाहते किये भूल को , तर्को को ढ़क देना ।
अपनी गलती छिप जाये ,गलत को सत्य बना देना ।।

आसान न होता सत्य दबाना ,यह बारूद का है गोला ।
नहीं दबा सकते ज्यादा , बिस्फोटक भी होता गोला ।।

हम सब जीवन-पथ के राही , सम्हल कर चलना सीखो ।
चूक न कर , चल सदा सम्हल ,सावधानी बरतनी सीखो।।

फगुआ (मगही)

कईसन रंग-गुलाल उड़ल हे,मस्ती भरल हे होली मे.
डुबल उमंग में जियरा सब के,रोके रुकत न होली में.
मस्ती भरल हे होली में ….

झलक रहल हे ,बोल से सब के,लाज न तनिको बोली में।
फागुन के जब रंगे चढल त, रोक टोक का बोली में..
मस्ती भरल हे होली मे….

बासंती रंग सजे गोरी पर ,सजल गुलाबी चोलीमें.
चुनरी भींगल,रंग में डूबल,यौवन,लुक झाँके चोली में.
मस्ती भरल हे होली में….

बाज न आवत करत ठिठोली,सब अपने हमजोली में.
जोश – उमंग के और बढ़ावत, ये गुण,भंग के गोली में.
मस्ती भरल हे होली में…

गावत फगुआ,ढोल बजावत,नाचत,मिल के टोली में.
देवर भाभी के साथ जमल हे,कोई हार,न मानत होली मे.
मस्ती भरल हे होली में…

ब्रज में होली खूब मचल हे,राधे – किशन की टोली में.
ग्वाल बाल सब किशन बनल हें, गोपियन, राधा होली म़े
मस्ती भरल हे होली में..