मैं तो हूँ, जल की धारा, निरंतर बहती रहती हूँ।
झेल सभी बाधाओं को, आगे बढ़ती रहती हूँ॥
पर्वत की ऊंची चोटी से, मैं, बर्फ पिघल बनती हूँ।
राह बनाती, खुद जाती, विश्वास स्वयं पर करती हूँ॥
बढ़ती जाती अविरल पथ पर, घुंस कर पर्वत के खोहों से।
स्वयं खोज लेती पथ अपना, भिड़कर हर अवरोधों से॥
चट्टानों से, भिड़ जाती, निर्भय हो, राह बना लेती।
हर-हर शोर मचाती हुई, अवनि तल पर छा जाती॥
मग में आए, पाषाण अगर, अवरोधक जो बन कर।
कंकर-बालू उसे बनाती, रगड़-रगड़, घिस-घिस कर॥
बड़े-बड़े वट वृक्षों की भी, नामोंनिशां मिटा देती।
तोड़-ताड़ डालों को इसके, धड़ को कहीं बहा देती॥
जीवन देती हूँ मैं जग को, मीठा जल देती पीने को।
फसल उगाता मेरा जल ही, देता जीवन जीने को॥
करती मैं उपकार सबों पर, बदले में क्या देते लोग।
दूषित करते जल मेरा, अमृत को गरल बनाते लोग॥
मैं चुपचाप सहन करती, नहीं कभी कुछ कहती हूँ।
अपने संतानों की कुमति पर, घुंटती-सहती रहती हूँ॥
भोगेगा पर स्वयं नतीजा, करनी का फल पाएगा।
नियम सदा चलता आया, जो बोयेगा, सो काटेगा॥
महीना: अप्रैल 2018
दिखाये तो सही
है कौन कहता तुम सा ,जहाँ में कई हसीं ।
यकीन तो मुझको नहीं, दिखाये तो सही।।
दिख जाये जो तुम सा ही,इत्तेफाक से कहीं।
पर जो बात तुममें है, उसमें आये तो सही।।
फेरता हूँ जब कभी ,नजरें घुमाये सरसरी ।
आती नजर न तुम सा, नजर आये तो सही ।।
इत्मीनान से फुर्सत में,तनहा ही बैठकर कहीं।
सोंचेगा क्या चितेरा , ये बताये तो सही ।।
सोंचता रह जायेगा, उलझन मे पड़ वहीं कहीं।
पूछेगा वहाँ किससे , समझाये तो सही ।।
मुकावला तेरा नहीं , इस जग में है कहीं ।
आशा ही नहीं बिश्वास है, गलत तो है नहीं ।।
किनका सुनाईंं दर्द अप्पन (मगही)
किनका सुनाईंं दर्द अप्पन, कउन सुनल चाहतन।
जख्म-ए-जिगर किनका दिखाईं,कउन देखल चाहतन।।
दुनियाँ बडी़ अजीब हेवे,अजीब ही सब लोग हथ ।
बढि़या दिनों के साथ सब हथ,बुरा दिनों में न कोई हथ।।
किनका समझ लीं मीत अप्पन,हर दम एही हम सोंचिला।
नजर घुमा हर ओर देखली,न कोई हमरा मिललन ।।
चैन से न रहे हे दिल,बेचैनियों से जूझलन।
सूकून तो मिले न हेवे , बेसब्रता से खोजलन ।।
छाया भी साथ छोड़ देहे, सबलोग बतवा जान हथ ।
फिर भी बिवस हन दिल के हाथे,नादान ई न मान हथ।।
बढल जा हे कसक दिल के,दिन दुनी रात के चौगुनी ।
रोके न हमरा से रूके हे,बेदरद और ये बेचैनी ।।
किनका सुनाईं दर्द अप्पन,कउन सूनल चाहतन ?
जख्मे जिगर किनका दखाऊँ, कऊन देखल चाहतन।।
कलम रुकती नहीं है
कलम चलती रही है कलम रूकती नहीं है ।
सदा ही लोग को अवगत,कुछ करती रही है ।।
अथाह क्षमता है भरी, कुछ भी करा सकती कभी।
तुफान को भी शान्त कर दे,तुफान ला सकती कभी ।।
धार इनकी तीक्ष्ण होती , काफी अधिक तलवार से ।
तलवार से बच जाये पर, बचता न इसकी धार से ।।
जानवर को आदमी भी ,यह बना देती कभी ।
खूँखार में भी नम्रता , भर दिया करती कभी ।।
कभी जब रंग भर देती , जमाना ही बदल जाता ।
थक कर हार जो बैठे,नया फिर जोश भर जाता ।।
नया प्रवाह भर देती, दिशायें ही बदल जाती ।
थी मद्धिम गति जिनमें, अचानक द्रुत गति आती ।।
अपनी ओर से प्यारी कलम ,कुछ भी करा देती ।
दुनिय़ाँ ही नहीं केवल ,बैठे हुए ब्रह्माण्ड दिखलाती ।।
करिश्मायें बहुत इनमें, जानें क्या करा देती ।
नव जिन्दगी देती किसी को,किसी की जिन्दगी लेती ।।
अछूता कुछ नहीं इससे,जहाँ यह कुछ न कर पाती ।
बैठे यहीं पर ,जग का सारा,पाठ पढ़वाती ।।
इसे छोटा नहीं समझें , न कीमत आँक कोई सकती ।
एटम बम भी इसके सामनें, पीछे ही रह जाती ।।
जो कुछ सोंचता मानव, यह लिपिबद्ध कर देती ।
सोयों को जगा देती, नव यौवन उसे देती ।।
अनेंको और गुण इनमें ,जिसे ब्याख्या किया जाये ।
कागज गर बनें धरती, वह भी कम ही पड़ जाये ।।
कलम चलती रही है, कलम रुकती नहीं है।
युगों से सारी बातों को, सदा करती रही है ।।
वही जीवन में बढ़ते हैं
समय का जो रखते पहचान,रखता है जो सब का ध्यान ।
बैर न करता कभी किसी से,उचित देता सब को सम्मान ।
सब को जो आदर करते हैं,वही जीवन में बढ़ते हैं ।।
अपनें गैरों का भेद न रखते, सब के सब दिखते एक समान।
अमीर ,गरीब,राजा और रंक का ,नहीं रखते अलग पहचान ।
जो सब का आदर करते हैं ,वही जीवन में बढ़ते हैं ।।
जो मिलते जुलते हैं सब से , सुख -दुख में सामिल हो सबके ।
परमारथ में समय बिताते कुछ, अपनों सा भाव धरे सबसे ।
पर पीडा को ,जो समझते हैं,वही जीवन में बढ़ते हैं ।।
जो समय का आदर करते हैं ,इसे बर्बाद न करते हैं ।
अधिक काम में इसे लगाते, गप -शप में नहीं बिताते है ।
जो पहचान इसे कर लेते हैं, वही जीवन में बढ़ते हैं ।।
सो जाना तो खो जाना है, नहीं कोई इससे अनजान ।
जो जगते और जगाते हैं, वही मानव होता महान ।
जीवन मे जो अपनाते हैं , महान वही बन जाते हैं ।।
जो खुद पीडा़ को सह कर भी ,करते लोगों का है कल्याण।
वह मानव सिर्फ नहीं होते हैं, मानव में बडे़ महान ।
नेतृत्व सभी को वे करते ,मसीहा वे बनते हैं।।
अवतार कभी लेते हैं जग में, करने जग का कल्याण ।
सब का पीडा़ खुद सह लेते,पर जग का कर देते कल्याण।
पी कर जग का सभी गरल, मसीहा कहलाते हैं ।।
धन्य-धन्य होतुम अवतारी, धन्य तेरे सब काम ।
तूँने दर्शन दे धन्य किया, तुम कितने बडे़ महान।
तार दिया तूँने जग को, अवतारी कहलाते हैं ।।