जिन्दगी स्वप्न है , इस स्वप्न का भरोसा कितना ?
एक खटका ही काफी है ,टूटने केलिए,दमही कितना?
निस्सार है जिन्दगी ये ,मोह क्यों करना इतना?
दिया जिसने है जो ,ले ले भी तो क्यों गम करना??
मैं तो एक बुत हूं , पर हूं ,चलता फिरता ।
गढा हो जिसने मुझे, नचाये वो चाहे जितना ।।
जाने मकसद भी क्या , तुझको मुझे बनाने का?
पर करूं मैं फिक्र भी क्यूं ,ब्यर्थ में उसकी इतना??
खता तो मेरी ही , क्यूं मैं खपाऊं सर अपना?
जो भी करना है करें , मुझे है क्या करना ??