पैगाम उल्फत का तेरे , पास पटाऊं कैसे ?
छिपा रखा हूं जमाने से ,अब और छिपाऊं कैसे??
बहुत बेहाल है दिल , समझता नहीं समझाने से ।
काफी उलझन है मुझे, उलझन को हटाऊं कैसे ??
बुलंद कर हौसला,पहुंच जाता हूं,कभी दरपर भी तेरे।
हौसला पस्त हो जाती सभी,आवाज निकालूं कैसे??
लगा है पहरा ज़मानें का ,हर ओर से नजरें हमपर।
बहुत मुश्किल है ज़माने की , नजरों से बचाऊं कैसे??
जान दे दूं भी अगर , मिलनें की बेकरारी में तुमसे।
डर है बदनामी की तेरी ,बदनाम कराऊं कैसे ??