सफल वह जिंदगी.

एक दीप ही हो प्रज्वलित , प्रकाश देता है ।

घर का अंधेरा दूर कर ,रौशन बनाता है ।।

समय जब रुख बदल देता ,तो सबकुछ बदल जाता।

दीप जो रौशनी देता , वही घर को जला देता ।।

सब कुछ वही रहता , केवल वक्त बदलता है ।

चमकता हुआ दिनमान भी , कभी अस्त होता है।।

प्रचंड गरमी सूर्य की , तब लुप्त हो जाती ।

निशा की कालिमा घनघोर ,हर ओर छा जाती।।

तारे टिमटिमाते जो , जऱा कुमकुम नजर आता ।

काली निशा की चीर काली ,पर गोटा नजर आता।।

चांद की चांदनी आती , समां थोडी बदल जाती ।

उनकी ज्योत्सना काली निशा में, जान ला देती ।।

यही है वक्त का प्रभाव , जो सब कुछ बदल देता ।

क्या से क्या बना देता किसे ,समझ तक नहीं आता।।

बदलाव तो हर चीज में, आता सदा रहता ।

सजीव तो सजीव , निर्जीव भी बदल जाता ।।

नियती का खेल यह प्यारा ,चलता सदा रहता ।

रुक जाये गर यह खेल , सबों का अंत हो जाता।।

सुख -दुख की घड़ियां भी , चलती सदा रहती ।

सुख की घड़ी आनन्द भरती ,दुख बेचैन कर तेती।।

पर दोनों जरूरी है, तभी अनुभूतियां मिलती ।

बिना कुछ दुख की अनुभूति,मजा सुख की कहां मिलती।

ये जीवन,मिलनस्थल है, दोनों ही घड़ियों का।

सफल वह जिंदगी होती ,मजा लैते जो दोनों का ।।