गर ख्वाब है ये जिंदगी , तो ख्वाब का फिर क्या ?
यह कुछ पलों का खेल है ,इस खेल का फिर क्या??
ख्वाब तो है ख्वाब ही , हकीकत से वास्ता ही क्या ?
किस पल न जाये टूट , बिखरने में होती देर क्या ??
रब ही बता सकेगा सच , किसी और को पता ही क्या?
डूबोये रहेगा कब तलक , यह माजरा ही क्या ??
सोने को ही खोना बताते , कुछ लोग है न क्या ?
पर, खोये वगैर ख्वाब भी , आती कभी है क्या ??
ख्वाब ही संजीवनी , न जिंदगी का क्या ?
बुझते हुए दिये को फिर ,जलाती नहीं है क्या??
मिट जाये ख्वाब जिंदगी से , तो खत्म जिंदगी न क्या?
बिन ख्वाब कोई ज़िन्दगी ,वह जिंदगी भी क्या ??