अब दौलत के लोग दीवाने.

अब कर कुटुम्ब का क्या कीमत,दौलत मंदों से प्यार ।

हो गये दौलत के लोग दीवाने,बाकी सब कुछ बेकार।।

उनकी दौलत उनको होती, उसमें क्या तकरार ।

नहीं मिलेगी कुछ भी तुमको,सारे ऐठन बेकार।।

अपनी औकात में रहना सीखो, औरों से क्या लेना ।

तुझे काम देगा तेरा ही , ब्यर्थ भुलावे में क्यों रहना।।

दिया हाथ है दो दो , चाहे जिसने भी भेजा तुमको।

उन हाथों से काम करो , फैलाओ कभी नहीं उनको।।

उन हाथों में शक्ति दिया , ‘भेजा’ में बुद्धि भी डाला।

इन्ही हाथ दोनों से मानव ,जाने क्या क्या कर डाला ।।

प्रकृति बनाई जितनी जीवें , मानव उनमें सर्वोत्तम ।

अपने ही बल और बुद्धि से , कहलाता वह सर्वोत्तम।।

हो रहा क्षिण मानव बुद्धि बल ,जो है भी भटक रहा है।

रज,काम,क्रोध,मद,लोभ ,मोह का,पडता प्रभाव रहाहै।

इन अवगुण का प्रभाव मनुज पर,चढ़ता निज जाता है।

सारे कूकर्म करने का उनमें, इच्छा जागृत करता है।।

जा रही बदलती नित्य प्रवृतियां,सद्गुण सेदूर हुएजाते।

अवगुण का प्रभाव नित्य, हावी उनपर होते जाते ।।

भर गया मैल मानव मस्तिष्क में,दूर इसे करना होगा।

सात्विक विचार मनमें आजाये,ऐसा कुछ करना होगा।

ये बातें नहीं असम्भव ,पर उतना भी आसान नहीं ।

लेगा अवतार महामानव कोई,परकब कहनाआसान नहीं।।

एक अकेला ही दिनकर तो,तम को रोज भगा देते।

अपनी उर्जा दे जीवों पर,अपना अलख जगा देते ।।

टिप्पणी करे