मुखौटे बदल लेते.

न जाने लोग क्यो अपने , मुखौटे को बदल लेते।

उतार कर एक मुखौटा को, लगा कोई दूसरा लेते।।

मुखौटे को बदलने में, ये प्रवीण बड़े होते ।

अन्य सब जीव में यह गुण, बहुत ही कम हुए होते।।

डाल कुछ ज्ञान ज्यादा प्रकृति , मानव बनाई है।

निर्देशन स्वयं दे अपना ,इसे सब कुछ बनाई है।।

मुखौटे को बदलने की कला, उसने ही तो डाली।

कचरों से भरा मस्तिष्क ,मानव की बना डाली ।।

मौका देखकर अपना , मुखौटा ही बदल लेता ।

उल्टा काम कुछ करके, उसे फिर से बदल लेता।।

कभी यह चोर बन जाता,कभी शरीफ बन जाता।

शराफत का मुखौटा में ही ,इसका ऐब छिप जाता।।

मुखौटे ही बदल कर ये ,सदा धोखाधड़ी करते ।

किसी के दिल में घुॅस जाते , उसे बर्बाद करलेते।।

किसी को है नहीं बख्सा, मुखौटा बदलने वाले।

यहां था कद्र संतों का , उसे बदनाम कर डाले ।।

मुखौटे ही बदल अपना, ये नकली संत बन जाते ।

असली रूप में अपना, ये जालिम, दुष्ट है होते ।।

समाज का पथ-प्रदर्शक थे,अब शोपक वही बन गये।

हो गये खुद दुराचारी, अधम सब कर्म में लग गये ।।

थी उनकी ख्याति दुनियाॅ में , उन्हें भी यह नहीं छोड़ा।

उनकी स्वच्छ छवि पर भी ,गन्दगी फेंक कर छोड़ा ।।

मुखौटे को समझ पाना, न बस की बात है सब में ।

संतो के प्रति दुर्भावना , है भर ‌दिया सब में ।।

किसी को भी नहीं बख्सा , मुखौटा बदलने वाले।

यहाॅ था कद्र संतों का , उसे बदनाम कर डाले ।।

मुखौटे बदल लेते.&rdquo पर एक विचार;

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