हर आदमी का अपना, पहचान होना चाहिए।
कर्म ही पहचान हो, सुकर्म होना चाहिए ।।
माॅ- बाप तो देकर जनम,, संस्कार दे पालन किया।
किये गये आप का सुकर्म पर, उन्हें गर्व होना चाहिए।।
जिस संतान से माॅ- बाप, नित जाये बढ़ती कीर्तियाॅ ।
उस संतान से माॅ-बाप को, नाज होना चाहिए ।।
बढ़ जाये गर आपमें, अथाह ज्ञान शक्तियाॅ ।
तो फिर आप में विनम्रता,अथाह होना चाहिए।।
अनुशासन बिना तो आदमी,बस मात्र एक है जानवर।
अनुशासन किसी इन्सान में , भरपूर होना चाहिए ।।
हर आदमी समाज का, ईकाई होता नीव का ।
नींव को हर हाल में , मजबूत होना चाहिए ।।
छोटी- बड़ी अट्टालिकायें ,याकोई भी इमारतें।
हर नीव का कन्धा बहुत, मजबूत होना चाहिए।।
नींव तो दिखता नहीं, कोई देख पाता ही कहाॅ?
पर लोग को इस बात का, तो ज्ञान होना चाहिए।।
ज्ञान रख कर भी उसे , तहजीब जो देते नहीं ।
गर भूल गये कर्तब्य अपना,स्मरण कराना चाहिए।।