घृणा और प्रेम.

घृणा ,प्रेम तो साथी दोनों ,अलग भी कभी नहीं रहते।

हर दिल में दोनों वासहै करते,जुदा वे कभी नहीं होते।।

जिनके दिल में घृणा नहीं हो, ऐसे लोग नहीं होते।

होते भी होंगे ऐसे तो ,गिनती में काफी कम होते।।

जिनके दिल में आधिक्य हो जिनका,प्रभाव वही है दिखलाता।

बना बेचारा दूजा बैठा, चुपचाप वही नजर आता।।

घृणा उग्रता पैदा करती, प्रेम सुधा है बरसाता ।

असर जिसका जिसपर जब होता,वही प्रभावहै दिखलाता।।

प्रवृत्तियाॅ दोनों ही अपनी,अलग अलग हुआ करती।

होते विपरीत एक दूजे का,कभी भी मेल नहीं खाती।।

जैसे दो विपरीत धुर्व मिल,एक चुम्बक पूर्ण बना देते।

दोनों ही रहते एक साथ ,प्रभाव अलग दोनों रखते।।

ईच्छायें दिल पैदा करता, उसका तो काम वही है।

मस्तिष्क उसका मंथनकरता,जिसकानिर्णय अंतिम है।

घृणा शत्रुता पैदा करती , प्रेम तो मित्र बनाता है।

एक गरल पैदा करता,तो एक सुधा बरसाता है।।

यह घृणा मनुज का शत्रु होती,विवेक खत्म करदेती है।

उल्टा-पुल्टा काम करा, बदनाम उसे कर देती है ।।

प्रेम बड़ा अनमोल विधा है,असंभव को संभव करदेता।

डूब रहे नैया को भी , जा कर उबार उसे कर देता ।।

प्रेम ही पूजा है दुनियाॅ में, अन्य न कोई इसके पूजा।

जिसके दिल में प्रेम सुधा हो, क्या उसे बिगाड़े दूजा।।