छलकते जाम आॅखों से तुम्हारी ,मैने देखा है।
हुई जब तुमसे आॅखें चार, उसमें प्यार देखा है।।
उनसे हुई नही बातें , ज़ुबां कुछ कह नहीं पायी।
छलकी जाम आॅखों से तेरी, पलकें रोक न पायी ।।
बहुत सी कह गयी बातें, ईशारों ही इशारों में ।
ढा गयी जुर्म भी आॅखें , इशारों ही इशारों में।।
असर उस जाम का देखें, आॅखें रतनार सी हो गयी।
भरी हो जाम की प्याला , आॅखें यार की हो गयी ।।
जाम तैयार है पी लें ,झिझक किस बात की होगयी।
छिपी भी अब कहां कुछ है,सारी राज ही खुल गयी।।
हृदय के साफ होते ये, ये कहते पीने ही वाले ।
जो कहते साफ है कहते, है कहते यह भी मतवाले।।
ये दोनों जाम का प्याला, क्या-क्या नहीं कर दे।
नजर भर देखते उसको, दीवाना ही बना रख दे।।
ऐसी जाम ये होती, जरूरत ही न पीने को ।
झलक भर देखना काफी ,नशे में चूर करने को।।
न प्याले की जरूरत है, जरूरत है न साकी की।
नजरें मिल गयी उनसे, नशा हुई पीने वालों की।।
नहीं कुछ चाहिए ज्यादा ,सुरा को पीने वाले को।
आॅखो ने पिला दी जाम खुद ,हुई बस दीवानें को।।
क्या -क्या नहीं देखा , अकेला हम न देखा है।
उसी को जाम कहते लोग,जिसे सबलोग देखा है।।