भारत के जिस वैशाली ने, गणतंत्र का जन्म दिया।
फली-फूली प्रणाली ऐसी, जग ने जिसे पसंद किया।।
भारत के जन-जन के मनमें,घुला मिला है यह ऐसा।
दुग्ध मिला रहता है जल में,ठीक समझ लें है जैसा।।
अडिग आस्था,पूर्ण समर्पण,हैहर भारतवासी के मनमें।
घुला -मिला बैठा है जाकर, भारत के हर-हर कणमें।।
ऐ वैशाली नमन तुझे, तूॅ गणतंत्र की जननी है ।
तूॅ विहार का गर्व न केवल, भारत माॅ तेरी जननी है।।
गणतंत्र के राहों चल, भारत बढ़ता जाता है ।
हर कदम हमारा प्रगतिपथ पर,अग्रसर होता जाता है।।
अन्य बहुत से देश विश्व के, यह प्रणाली अपनाया
बचे हुए कुछ हैं बाकी वह भी,अपनाने का मूड बनाया,
पहले नाम विशालगढी था, बाद बना वैशाली ।
बिम्बिसार था राजा तबका,थी राजनर्त्तकी आम्रपाली।
दुर्भाग्य हुआ फिर वैशाली का,फैली जोरों की महमारी।
ग्रास बना कर लगा निगलने,जनताको गुण-प्रलयकारी।
त्राहिमाम मच गया वहाॅ, कैसे इससे निपटा जाये।
ऊधम मचाते पिशाचों से,कैसे भिड़ कर सलटा जाये?
भगवान बुद्ध तब ज्ञान प्राप्त कर, राजगृह में रहते थे।
ज्ञानों की अमृतवाणी,लोगों में वितरित करत़े थे ।।
खबर मिली जब गौतमबुद्ध को, पहुंच गये वे बैशाली।
मुक्त किये दुख से जनता को, आह्लादित हुई वैशाली।।
ज्ञान पुंज हो जहां बुद्ध सा ,दुख कैसे रह सकता है।
सूर्य जहाॅ हो स्वयं उपस्थित ,क्या तिमिर वहां रह सकता है??
दुख सारे काफूर हुए, जहां बुद्ध खुद पहुॅच गये।
रोती जनता बिहॅस पड़ी, बैशाली में जैसे चरण गये।।
अमन चैन छा गया पुनः, इस बैशाली के आंगन में।
उत्सर्जन ज्ञानों का होना, शुरू हुआ उस आंगन में।।
वैशाली शत नमन तेरा,ऐ पावन धरती तुम विहार की।
गणतंत्र की ज्योति जग की,नहींहै केवलतूॅ विहार की।।