प्यार की तासीर गर्म हुआ करती.

उमड़ते प्यार की तासीर, इतनी गर्म हुआ करती।

पत्थर दिल को पिघला कर, उन्हें भी मोम कर देती।।

बर्फ ठंढा हुआ करता , अनुभूति तो यही कहती ।

पर तासीर कहते लोग, काफी गर्म हुआ करती ।।

जो आते हैं नजर जैसा , वैसा ही नहीं होता ।

यह भूल नजरों का ,अक्सर हुआ करता ।।

शक्ति प्यार में कितनी , समझ में ही कहां आती ?

सर्व शक्तिमान को दोडी कभी , आनी भी पड़ जाती।।

घटनाएं अनेकों बार की ,बयां तो है यही करती।

जरूरी काम को भी छोड़, दौड़ आनी उन्हें पड़ती ।।

जो झुकना ही नहीं सीखा, उसे मुहब्बत झुका देती ।

ये कितने प्यार के भूखे , सबों को तब समझ आती।।

बयां जितनी करै उनकी, पर काफी नहीं पडती ।

दिखाना दीप सूरज को , कहावत सी लगा करती।।

ऐसा प्यार ही हालात, पैदा कर दिया करती ।

स्वय को भूल जाते खुद, समझ में कुछ नहीं आती।।

दीवानगी में लोग से ,शायद यही होती ।

मैं का ही वहम दिल से ,निकल बाहर चली आती।।

वहम में जो पडे होते , उन्हें कुछ कुछ नजर आती ।

जो दिखते सामने उनको, नजर पर कुछ दिखा देती।।

वहम घुसता जहां पर ,वह जगह तबाह हो जाती ।

बड़क्कत हो भला कैसे , स्वयं बर्वाद हो जा्ते ।।

3 विचार “प्यार की तासीर गर्म हुआ करती.&rdquo पर;

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