समाधान हो जाये.

घृणा हो ही नहीं इस लोक में, बस प्यार रह जाये ।

तो सबसे श्रेष्ठ लौकों में , ये पृथ्वी लोक हो जाये।।

यही है कर्म का स्धल , यही सब कर्म होता है।

हो कूकर्म या सूकर्म ,सारे यहीं होता है ।।

कहीं पर स्वर्ग है होता , जैसा लोग सब कहते।

यही, स्थल परीक्षा का , परीक्षा सब यहीं होते ।।

सफल हैं जो हुआ करते , उसे वह लोक मिल जाता।

स्थिति-प्रज्ञ रहने का , अहम संदेश मिल जाता ।।

परिक्षा पर कठिन होता,सफल कमलोग हैं होते ।

मही पर आ भटक जाते , गलत राहों पे चल देते।।

काम,क्रोध, मद ,लोभ का , फंदा बिछा होता ।

फैला जाल को अपना , लोगों को फंसा लेते ।।

घृणा का जड़ यही होता , अनोखा ढंग है इनका।

‘ये चारों अस्त्र जो होते ‘, बड़े मजबूत है इनका ।।

घृणा जब फैल जाता है, मनुज शैतान बन जाता ।

हिंसक जानवर से भी , इसे बदतर बना देता ।।

इसे बदनाम कर सबके ही , नजरों से गिरा देता ।

सदगुण ही मानव जिन्दगी का,खत्म कर देता ।।

घृणा का भूत मानव जिन्दगी से, दूर हो जाये ।

मात्र पावन हृदय में ,प्रेम का संचार हो जाये ।।

फिर हर आदमी, अपने आप में महान हो जाये।

सारी समस्या जगत की , समाधान हो जाये ।।

फिर तो बात ही जन्नत की, सारी खत्म हो जाये।

मही ही स्वयं ‘जन्नत’ का, नया पर्याय बन जाये ।।