आजसा बिगड़ा हुआ स्वभाव नहोता

काम,क्रोध,मद,लोभ का, प्रभाव न होता ।

मनुज का आज सा बदला हुआ,स्वभाव न होता।।

मनुज जैसा बनाया था गया, बदलाव न होता।

सुबुद्धि पर कुबुद्धि का कहर , इतना नहीं होता ।।

न कोई जन्म से अच्छा , नहीं कोई बुरा होता ।

इन चारों गंदगियों का ही असर ,इनको बुरा करता ।।

ह्दय निर्मल हुआ करता , बहुत नाज़ुक हुआ करता।

इन पर गंदगी का रंग भी ,जल्दी चढा करता ।।

इन चार पर जो भी कोई, कब्जा किये लेता ।

वह इन्सान मानव से , फरिश्ता में बदल जाता ।।

इन्सानियत का यह मसीहा, विश्व का होता ।

हर बंधनों में रहकर,बन्धन-मुक्त है होता ।।

बहुत ही लोग कम होता , जो इनको बांध कर रखता।

अधिकांश तो इन चार का, गुलाम बन जाता ।।

गुलाम बन उनके, इशारों पर चला करता ।

वशीभूत हो ,आदेश का पालन किया करता ।।

वह इन्सान तो इन्सान फिर ,रह नहीं जाता ।

बदतर जानवर से भी वह, गिरा हैवान बन जाता।।

यही इन्सान और हैवान में, तो फर्क है होता ।

वरना, इन्सान और एक जानवर ,एक हो जाता ।।

जिन में अवगुणों की प्रचुरता , कम हुआ करता ।

महान उतना ही अधिक, वह हुआ करता ।।

जिस सो से मानव बना ,अनुरूप यह होता ।

प्रकृति की कामना को मूर्तरूप, बस यही देता ।।