रूप होने से मानव नहीं होता.

भरा हौसला होता जिनमे, कुछ करके दिखलाने का।

सफल वही हो पाते अपना , मानव जीवन पाने का।।

मानव जीवन पाने का मकसद,वही सफल कर हैपाते ।

जो जीवन को अपने हरदम,सन्मार्गों पर लेजा पाते।।

सदा भलाई औरों का,करने की हो अभिलाषा जिनकी।

मानव वही सफल होते, सफल जिन्दगी होती उनकी।।

वन्य जीव भी तो अपना, खुद का जीवन है जी लेता ।

किसी जीव की कर हत्या ,अपनी भूख मिटा लेता ।।

नहीं फिक्र उनको रहता है, बाकी अन्य जीवों का ।

फिक्र सिर्फ इनको रहता ,उदर अपना भरने का ।।

मानव जीवन वही सफलहै,करतेऔरोंका जो कल्याण।

‘जियो और जीने दो’का , करते जो हरदम सम्मान ।।

वृथा लोग वैसे होते , जो अपने लियै जिया करते ।

नहींभलाई कभीकिसीका,तन,मन,धनलगा कियाकरते।

एक वन्य-प्राणिऔर उस मानवमें,फर्क कहां रह जाता।

इससे अच्छा तो वन्य-प्राणि, जो धोखा कभी न देता।।

जौ मानव हो कर कर्म नहीं, मानव का है करता ।

कर्त्तव्यनिष्ठा हो न जिसमें, पशु से भी बदतर होता ।।

रूप नहीं काफी होता , एक मानव बन जाने का ।

वहतो पशु सेबदतर होता,हकक्या मानव कहलाने का।

ऐसे ही निकृष्ट कर्मों से , मानव बदनाम हुआ करता ।

परदेख मुखौटा कभीनहीं,इसका पहचान हुआ करता।