सफलता

सफलता आज भी ,उनके चरण की धूल बन जाती ।

कर्मठ ,दृढ-प्रतिज्ञों की सहर्ष,अनुचारी बन जाती।।

नहीं वे मांगते कर जोड़,ना गरदन झुका अपने ।

सफलता स्वयं आती है ,गले की हार बन उनके।।

कर्मों का भरोसा हो , अपने आप पर जिनका ।

सफलता चूमती भरदम कदम ,उस कर्मयोगी का ।।

सफलता स्वयं जा उनके, गले की हार बन जाती।

आती स्वयं ही चलकर, आकर धन्य हो जाती ।।

पाने को सफलता जो , कोई भी गिड़गिड़ाते हैं।

सफल समझें वे अपनी जिंदगी में, हो न पाते हैं।।

इसके लिये अपने , जो घुटने टेक हैं देते ।

असफल लोग ये होते , बड़े बदनाम भी होते।।

सम्मान ,मानव की निधि , अनमोल है होती ।

जिसने खो दिया उसको, मानव में कहां गिनती??

मानव खत्म हो जाता , ढांचा सिर्फ बच जाता ।

चलता हुआ बस एक , नर कंकाल रह जाता ।।

सफलता चाहिए हर को, बेंच सम्मान पर हरगिज नहीं।

संकट जायेपड़नी झेलनी,समझौता कभी हरगिजनही।

वरना आदमी और जानवर में,फर्क क्या रह जायेगा।

एक जानवर सा आदमी,भरता पेट ही रह जायेगा।।

एक इन्सान और एक जानवर में ,क्या होता फर्क है।

आदमी संयमित हर काम में, रहता यही तो फर्क है।।

होते जो सफल हों ज़िन्दगी में, कर्म कर अपना ।

बनताहै सितारा वह गगन का,जिसे पहचान है अपना।