किसे रोकूं ,किसे टोकूं , किसका कौन सुनता है।
अपने मन का सब करते, किसका कौन करता है।।
जमाने का असर है, या फिर कुछ और होता है।
समझ में जो जिसे आता, वही सब बात कहता है।।
बड़ो का कद्र होता था कभी, अब कौन करता है।
समय का चक्र कह सकते,समय सब कुछ बदलता है।।
जनश्रुति कभी नवपीढियों का,था मात्र ज्ञान-साधन।
समय का चक्र है, सब आज, सुन,पढ़, देख लेता है ।।
दिखाने का बताने का,आज व्यवसाय होता है।
असर दर्शक पे क्या होगा, सोचा कौन करता है।।
बड़ी कुछ हस्तियां भी, इस काम में संलग्न रहते हैं।
मिलावट झूठ-सच का कर, सबों को बड़गलाते हैं।।
युधिष्ठिर आज दुनिया में, बहुत से लोग बनते हैं।
बिना समझे बुझे गुण को ,झूठ-प्रचार करते हैं ।।
‘अश्वत्थामा हतो’ का अर्ध्दसत्य ,एक बार जो था कहा।
युधिष्ठिर आज पैसे ले , कथन दिन- रात कहता है।।
गरिमा खुद की खो देता , प्रतिष्ठा भूल जाता है ।
दौलत बनाने का हवस , सब कुछ कराता है ।।
ऐसे लोग अपने पथ से जो, भ्रमित रहा करते ।
अर्जित पूर्व के सम्मान, को बदनाम करते हैं।।
सफल एक ज़िन्दगी का अर्थ तो , दौलत नहीं होता।
साधन मात्र है दौलत , साध्य हरगिज़ न ये होता ।।
आज पर बन गया है ज़िन्दगी का,साध्य ही दौलत।
होता ही नहीं कोई काम, चाहे कोई, बिन दौलत ।।
व्यवस्था ही हमारे देश की, आज बिगड़ी है ।
शिक्षा हो जहां मंहगा, शरम की बात कितनी है।।
शिक्षा को सुधारो, कर्णधारों, देर मत कर अब ।
हद से ही गुजर जब जायेगी, फिर क्या करोगे तब।।
कभी हम रह चुके हैं विश्वगुरु,पढाया वि्श्व को हमने।
पुनः हासिल करें सम्मान वह, जो खो दिये हमने।।