मुक्तक

30/12/2019

(०१)

सक्षम ,अक्षम कोई न होता, सिर्फ समय का फेरा है।

यही कराता है सबकुछ ही, इसीकी हाथों बेड़ा है ।।

गर्क करा दे,पार लगा दे, बस तेरा न मेरा है।

हम लोग सभी हैं कठपुतली,समय के हाथों डोरा है।।

(०२)

समय कराता हमसब करते, कुछ कियान इसमें मेरा है

हम सब तो तेरा अनुगामी,जो किया सभी कुछ तेराहै।।

हमसभी पतंगा आसमान का,पर डोर हाथ में तेरा है।

जो भी होता तुम्ही कराते,हम कैसे कहें हमारा है ??

(०३)

जन्नत में जायें , जहन्नुम में जायें ।

जैसा पेड़ लगाये , वैसा ही फल पाये।।

आक पेड़ में , आक ही फलते ।

खोजें गर आम वहां,आम कहां से पाये।।

मुक्तक

(०१)

कोई लूटता रहता , लुटाता भी कोई रहता ।

मस्त दोनों ही , अपने आप में रहता ।।

पर फर्क दोनों मे , कभी कम नहीं रहता ।

याचक सर्वदा नीचे , उपर सर्वदा दाता ।।

(०२)

एक याचक को कोई दाता से ,तुलना ही क्या करना ?

सूरज को दीप दिखाने जैसा,क्या नहीं कर्म है करना??

सागर का जल लेकर, बादल देता सब नदियों को।

उन्मादित नदियों क्या नहीं चाहती,सागर कोही लय करना??

(०३)

कोई याचक कोई दाता है , कोई वाचक कोई श्रोता है।

कोई अत्याचारी कोई त्राता है, कोई शत्रु कोई भ्राता है।

दौलत का पर सभी दीवानें, ये दौलत का ही नाता है।

अव्वल भ्रष्टाचारी अब तो , सज्जन ही कहलाता है।।

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समय ने किसको छोड़ा है.

समय का मार ने , कब किसी को छोड़ा है ।

बड़े-बड़ों को भी इसने, धरती सुंघा के छोड़ा है।।

स्वय को अमर समझ जो ,डूब जाते अत्याचारों में।

कब्र खोदकर उन्हें भी , दफन कर ही डाला है ।।

कितने आये, आकर गये चले , सितम ढाये ।

उन कुख्यात को , कयी बार, उसने मसल डाला है।।

बर्बर आये दुनिया में, निशानी छोड़ गये अपनी ।

समय सब धो दिया उसको , निशानी मिटा डाला है।।

ढंग समझने का , होता है अलग सब का ।

सेव तो नित्य गिरते देखते ,न्यूटन क्या देख डाला है।।

खुदा ने तो दिया है आंख दो-दो, देखने समझने को ।

नयन बिन ‘सूर’ने देखा , कहां कोई देख पाया है ।।

जहां में कौन अच्छा है, बुरा भी कौन है सबसे ।

देखा है अनेकों लोग पर, दृष्टिकोण अपना है ।।

प्रकृति ने है दिया मस्तिष्क मनुज को,विवेक भी डाला।

समझने बूझने की भी अकल, उसमें है दे डाला ।।

चश्मा लोभ का मानव, आंखों पर पहन रखा ।

उसे तो वास्तविक था देखना , रंगीन पर देखा ।।

जो असत्य था , उसको नजर ने सच समझ बैठा।

चश्मा लोभ का उनको , क्या से क्या दिखा बैठा ।।

विधाता का दिया था ज्ञान,ढक उसको यही देता ।

जो था सत्य , चश्मे ने उसे भी बदल है देता ।।

मुक्तक

21/12/2019

(०१)

छलकते जाम आंखों से,जिधर नजरें फिरे उनकी।

नशा में धुत्त कर देती ,नजर जिनपर पड़े जिनकी।।

इरादा कातिलाना हैं,अदायें शोख भी उनकी ।

घायल कर चली जाती, जुरमी नजर उनकी ।।

(०२)

तुझे एक झलक जो देख लेता, खो कहीं जाता ।

हसीन ख्वाबों में बहक, जाने कहां जाता ।।

रहता होश में हरगिज नहीं, मदहोश है रहता।

दीवानगी की हदें सारी, पार कर जाता ।।

(०३)

श्रेष्ठतम हर चीज ही , खतरनाक होते हैं ।

जिनके पास यह रहती ,सदा परेशान रहते हैं।।

हिफाजत में इन्हीं के लगे, दिन-रात हते है ।

सुख चैन लुट जाती , बरबाद रहते हैं ।।

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ऐ मातृभूमि के रखवालों .

ऐ मातृभूमि के रखवालों,तुम अविरल रक्षा करते हो।

जब देश तुम्हरा सोता है, सीमा पर डट तुम रहते हो।।

हो मातृभूमि की तपती धरती,कंटक बबूलका,भरा उद्यान।

पग पग हों कंटक चुभते, आगे दुश्मन बंदूकें तान।।

या कहीं कड़ाके की ठंढक,बन वाष्प रूईका फाहा सा।

प्रयास कोई कर रहा हो मानों,धराको ही ढ़क देने का।।

जीव-जन्तु वन के सबके सब,अपनें दरबेमें छिपे कहीं।

पर बीर प्रहरी,बेफिक्र झेलते,डटे हुए वे कहीं वहीं ।।

तेरी कर्मठता का क्या बोलूं,समझ में कुछ आती नहीं।

तेरा देशप्रेम को देख कर,बिन कहे रहा जाता नहीं।।

ऐ बीर सैनिकों धन्य तुम्हीं हो,भारत मांका प्यारा लाल।

हरदेशवासी करता तेरा आदर,सबदेख रहातेरा कमाल

हैं सभी सुरक्षित देशवासी,तेरी कर्मठता के कारण।

बढ़ रहा देश आगे मेरा ,तेरी दी निर्भिकता के कारण।।

स्वयं झेल कर आपदाये तुम, रक्षा देश का हो करते ।

खुद झेल गोलियां दुश्मन का,अमन देश को हो देते।।

देश प्रगति जब है करता, उसमें तेरा रोल अहम है।

दुश्मनसे निर्भीक रखना,नहीं क्या तेराकाम अहम है??

वैज्ञानिक खोज नया कर,कितना तुझे समर्थ किया।

तुमको युद्ध में लड़नेका नयी,अस्त्र-शस्त्र संधान किया।

किसान देश का सदा से तेरा,कदम से कदम मिलाया।

तुमको और तेरे देशवासी को,भोजन भर पेट कराया।।

देश तुम्हारे साथ खड़ा है, अपने मोर्चा पर डटा हुआ।

जो जहां रहा कर्तब्य निभा,तेरे मदद को खड़ा हुआ।।

मत सोंच अकेले तुम हो रण में, है देशवासी संग तेरे।

विविध समर्थन देकर तुमको,कर कुशल कामना तेरे।।

सदा डटे रहना, दुश्मन का,खट्टे दांत करा कर।

तुम निर्भिक हो शेर बहादुर,दुश्मनका अंत किया कर।।

सच्चा मित्र मिल जाये.

कौन है अपना कौन पराया , यह तो मौके की बात है।

सबके सब मौका परस्त है,यह कलियुग का संताप है।।

पिता,पुत्रका प्रेम है पावन, दिल का उनका अनुराग है।

हठ कर मांगे,पुत्र पिता से ,ना कर पाता इन्कार है ।।

विवसता चाहे जोकरवा दे,बात विवसताकी कुछऔर।

अनिच्छा से भी करना पड़ता,दिल कुछ चाहे,करता कुछ और।।

मात-पिता के होते बच्चे,आंखो का उनके तारा ।

कुर्वाण सभी कुछ कर सकते,उनपर अपना तन,मन,धन सारा।।

समय गाढा एहसास कराता, हित अनहित की बातें।

अच्छे दिनमें सबलोग हैं मिलते,दुर्दिनमें नजरन आते।।

दुर्दिन मै काम जो है आते,सच्चा मित्र वही होते।

झूठे तो भाग खड़े होते,नजर तक उधर नहीं आते।।

रिश्ते नाते , बातें-वादे, होते सारे अवसरवादी।

जो दगाबाज होते अन्दरसे,करते बाहरसे चमचाबाजी।

जो गफलत में पड़ जाते,चंगुल में उनके फंस जाते।

ये दगाबाज सब लूट उसे,नंगा ही कर दम लेते।।

बिनखुदगर्जी, रिश्तेदारों को,देते जो है आयाम ।

बहुत लोग कम मिलते ऐसे, जग करता उन्हें सलाम।।

जो बहुत भाग्यशाली होते, उन्हें ऐसे लोग मिला करते।

शुक्रिया लोग उपर वाले को,जमकर उन्हें दिया करते।।

गिनती मेंये थोड़े होते,फिरभी मिल जाते कभी-कभी।

नवरत्न कहा मिलताहै हरदम,मिलपातातो कभी-कभी

मौकापरस्त इस दुनियां में,मित्र अगर सच्चा मिलजाये।

धन्यभाग्य वे हैं होते , अनमोल रत्न जो पा जायें ।।

खाती नजर धोखा

जो आंखें देखती है देख,पूर्ण बिश्वास मत कर लें ।

खाती भी नजर धोखा, इसपर गौर तो कर लें ।।

भ्रम में डाल मस्तिष्क को ,न जाने दिखा देता ।

मस्तिष्क देख कर उनको ,पूर्ण बिश्वास कर लेता ।।

धोखा पूर्ण खा जाता, बातों को उलट देता ।

दिल को झूठ अपने जाल में ,कसकर जकड़ लेता।।

झूठी बात को ही सच समझ,उसपर अडिग होता।

घुसायें लाख सच्चाई उन्हें, पर घुस नहीं पाता ।।

भ्रमित को राह पर लाना,कभी आसान न होता।

मस्तिष्क पर पड़े प्रतिबिंब, वहां से हट नहीं पाता।।

समस्या आज की कोई नयी नहीं, काफी पुरानी है।

दिग्गज जो हुआ करते, वह भी हार मानी है ।।

अन्यथा कृष्ण कोथी क्या जरूरत,ब्रह्माण्ड दिखलाना।

खुद थकते नजर आये, पड़ा यह सब उन्हें करना ।।

अर्जुन थे पड़े भ्रम में, समझ पाते न समझाये।

लाचार हो कर कृष्ण यह,करतब थे दिखलाये।।

कभी आसान होता है नही,समझे को समझाना ।

प्रथम जो भी छवि बनती , उसे बिल्कुल मिटा देना।।

जो दिखता आंख को, सच मान लेना भी गलत होता।

मृगमिरीचिका जो है दिखाता ,गलत ही होता ।।

तहों तक जाइये ,जाकर उसे , हर तरह समझें।

खड़ा उतरे अगर वह हर तरह,तो सत्य उसे समझे।।

ऐ मन-मुसाफिर.

ऐ मन -मुसाफिर क्यों मेरे , तुम चैन से रहते नहीं !

रुकते नहीं पल भर कहीं, पल में यहां,पल में कहीं।।

चलते सदा दिन-रात रहते, विश्राम बस थोड़ा कहीं।।

चैन पल भर भी न मिलता , मिलती कहीं शान्ति नहीं।।

अशांत मन को सुख मिले, होता कभी ऐसा नहीं ।

सुख के बिना तो शान्ति , मिल कभी सकती नहीं ।।

बस शांति में ही जिन्दगी को , प्राप्त होता ज्ञान है।

चिन्तन-मनन कर आदमी, बनता रहा महान है ।।

ऐ मन-मुसाफिर तुम सदा ,बढ़ते हो, रुकते हो नहीं।

चिन्तन बिना कोई कभी, ज्ञान गूढ़ पाता है नहीं।।

गंतव्य क्या है, ऐ मुसाफिर,यह तो पहले जान लो।

सबसे सुगम क्या रास्ता ,जान लो पहचान लो ।।

यूं ही भटकने से कभी, मिलता नहीं गंतव्य है ।

दौड़े अगर भर जिन्दगी, मिलता नहीं मंतव्य है।।

पहुंचता नहीं कोई बिन चले,यह बात बिल्कुल सत्य है।

गंतव्य बिन चलता रहे, चलना नहीं क्या व्यर्थ है!!

हासिल नहीं बिन दूरदृष्टि , कोई कर पाता नहीं ।

पक्के इरादे के बिना, कोई सफल होता नहीं।।

मन-मुसाफिर गर बढ़े, गंतव्य पक्का जान कर ।

तय पहुंचना ही उसे है ,चलना यही है मान कर।।

हासिल जिन्हें गंतव्य है , वे ही सफल व धन्य हैं।

जो रास्ते में गये अटक , वे जिन्दगी मे फेल हैं।।

किसका कौन सुनता है .

किसे रोकूं ,किसे टोकूं , किसका कौन सुनता है।

अपने मन का सब करते, किसका कौन करता है।।

जमाने का असर है, या फिर कुछ और होता है।

समझ में जो जिसे आता, वही सब बात कहता है।।

बड़ो का कद्र होता था कभी, अब कौन करता है।

समय का चक्र कह सकते,समय सब कुछ बदलता है।।

जनश्रुति कभी नवपीढियों का,था मात्र ज्ञान-साधन।

समय का चक्र है, सब आज, सुन,पढ़, देख लेता है ।।

दिखाने का बताने का,आज व्यवसाय होता है।

असर दर्शक पे क्या होगा, सोचा कौन करता है।।

बड़ी कुछ हस्तियां भी, इस काम में संलग्न रहते हैं।

मिलावट झूठ-सच का कर, सबों को बड़गलाते हैं।।

युधिष्ठिर आज दुनिया में, बहुत से लोग बनते हैं।

बिना समझे बुझे गुण को ,झूठ-प्रचार करते हैं ।।

‘अश्वत्थामा हतो’ का अर्ध्दसत्य ,एक बार जो था कहा।

युधिष्ठिर आज पैसे ले , कथन दिन- रात कहता है।।

गरिमा खुद की खो देता , प्रतिष्ठा भूल जाता है ।

दौलत बनाने का हवस , सब कुछ कराता है ।।

ऐसे लोग अपने पथ से जो, भ्रमित रहा करते ।

अर्जित पूर्व के सम्मान, को बदनाम करते हैं।।

सफल एक ज़िन्दगी का अर्थ तो , दौलत नहीं होता।

साधन मात्र है दौलत , साध्य हरगिज़ न ये होता ।।

आज पर बन गया है ज़िन्दगी का,साध्य ही दौलत।

होता ही नहीं कोई काम, चाहे कोई, बिन दौलत ।।

व्यवस्था ही हमारे देश की, आज बिगड़ी है ।

शिक्षा हो जहां मंहगा, शरम की बात कितनी है।।

शिक्षा को सुधारो, कर्णधारों, देर मत कर अब ।

हद से ही गुजर जब जायेगी, फिर क्या करोगे तब।।

कभी हम रह चुके हैं विश्वगुरु,पढाया वि्श्व को हमने।

पुनः हासिल करें सम्मान वह, जो खो दिये हमने।।

बदलेगा तभी स्वरूप.

चांद की चांदनी स्निग्ध, उतर आई धरातल पर।

तम को दूर कर अपनी प्रभा से,रौशन धरा को कर।।

जाने तम कहां भागा, चांद की चांदनी से डर।

जा छिपा होगा कहीं ,निज आबरू लेकर ।।

अंधेरा यूं नहीं भागा, विवशता आ गया उनपर।

कुटिलता जा कहीं छिपता, किसी सज्जन के आने पर।।

दुर्जन को भागना पड़ता , सज्जन के अकड़ने पर।

कहां औकात है उसकी, देख एक बार तो भिड़ कर।।

उसका काम ही चलता,डरे को ही डरा कर के ।

डट जाता अगर कोई ,तो भागता,स्वयं ही डर के।।

अन्याय के प्रतिकार जो, करते नहीं डट कर।

बढ़ावा ही उसे देते, जो खुद भागते कट कर।।

भिड़ना सीखिए अन्याय से,कफन को बांधकर सर पर।

भागेगा वही खुद आपको , डरे नजरों से देख कर ।।

बिना भय प्रीत होती ही नहीं, गये हैं विद्वजन कहकर।

कथन है सत्य शत-प्रतिशत , गये जो वे हमें कह कर।।

शीतल चांदनी में दम , बहुत ज्यादा नहीं दिखता।

पर तम भागता भयभीत हो , मुठभेड़ न करता ।।

जो चलते सत्य के पथ पर, पथिक बैजोर हैं होते।

काया कृश दिखा करती ,शक्ति के स्रोत पर होते।।

जिधर बढ़ते कदम, हैं लोग उनके साथ हो लेते ।

उनके सत्यपथ का अनुसरण , सब लोग कर लेते।।

भय भागता उनसे, उन्हें छू भी नहीं पाता ।

उनकी शक्ति अंतः की, नजर जो है उसे आता।।

तूफां देखकर उनको ,अपना पथ बदल लेता ।

उधर से वह गुजरने का,जुटा हिम्मत नहीं पाता।।

खुदा के ही दिए वरदान से , गर काम ले लेते।

कुकर्मी हम न बन पाते , घृणित अपराध न होते।।

हुई जो भूल हमसे, हम सुधारें सब उसे अब भी।

बदलेगा तभी स्वरुप ,समाज आगे बढ़े तब ही ।।