जिसने बनाई दुनियाॅ ,कभी कुछ बोलता नहीं ।
छिपा सब भेद को रखता ,कभी मुख खोलता नहीं।।
जगत में चीज जितनी है , सभी उनके नजर में है।
कौन क्या कर रहा कहां, छिपा उनसे कहाॅ कुछ है??
नज़रों से कभी ओझल , नहीं कुछ भी हुआ करता।
कहां कुछ कर रहा कोई, खबर उनको रहा करता।।
मर्जी के बिना उनकी, खड़क पाता नहीं पत्ता ।
उनकी बिना ईच्छा , कहीं पर कुछ नहीं होता।।
कुछ भी कहीं होता , सब कुछ वही करता ।
कहते वह नहीं करता,तो कुछ भी नहीं होता।।
सारे जीव-जंतु को , वही भोजन कराता है।
कितना चाहिए उसको,वही सब कुछ पठाता है।।
आहार किसका क्या , वही निश्चित किया करता।
अनुरुप ही उस जीव क़ो, सबकुछ मिला करता ।।
जिसे जैसा बनाया है, वैसा सब उसे मिलता ।
जो घास खाता है , उसे तो घास ही मिलता ।।
खाती चींटियां मीठा , उसे मीठा मिला करता।
जो माॅस भक्षी हो , उसे तो माॅस ही मिलता ।।
बनाई जो भी हो दुनियाॅ , क्या खूब बनाई है।
जरूरत की सभी चीजें, वाखूब बनाई है ।।