(गजल)
पीने का कुछ न कुछ तो,बहाना बना देते हैं।
उठा के जाम सभी , जहर का, पी लेते हैं।।
पता सभी को है, ये चीज है बहुत ही बुरी ।
फिर भी उस जाम को, होंठों से लगा लेते हैं।।
ज़िन्दगी छोड़कर ,जाना तो है, निश्चित ही कभी ।
कुछ लहमों को , खुद यूं ही ,लुटा देते हैं ।।
बनाने वाले ,बनाया तो , यूं ही सब को ।
पर वे अपनों को , गैरों सा बना देते हैं ।।
खुद ही पीते हैं मगर, देते नहीं, तोहमत खुद क़ो।
इल्जाम कुछ ढ़ूंढ़ कर, औरों पे लगा देते हैं ।।
खुद ही बेहोश रहते , न होता होश उन्हें ।
इल्जामे बेहोशी का , पीने का लगा देते हैं।।