जो पीना नहीं जाना.

तुझे मैं भूलना चाहा , मेरा दिल भूल न पाया।

तेरी याद की तोहफा , दिल से जा नहीं पाया।।

कर के देख ली कोशिश ,अथक प्रयास कर डाला ।

कहाॅ मैं भूल पाया कुछ, उल्टे बढ़ा कुछ डाला ।।

भटकता देखकर मुझको, शरण दी प्यारी मधुशाला।

भुलाने केलिये गम को , थाम ली , मय का मैं प्याला।।

सुबह जब आंख खुल जाती ,थामता हाथ में प्याला ।

निरंतर यह चला करता ,खुला जब तक हो मधुशाला।।

यही हमको सुलाती है,यही हमको जगा देती ।

यही एक है सखा सच्ची,सदा जो काम है देती।।

असर जब तक रहा करता, सारा गम भुला रहता।

असर कमता मधु का जब , गम भी पलट आता ।।

खुदा भेजा है दुनियाॅ में, शायद गम भुलाने को।

साकी साथ दे रखा, मय सब को पिलाने को ।।

हलक से जब उतरती है, गमों को दूर कर देती।

सबकुछ भूल जाने को, उसे मजबूर कर देती।।

कहाॅ गिर जाये वह पी कर ,रहता गम कहाॅ उसको।

कुत्ते शू करे मुॅह पर , पड़ता फर्क क्या उसको ।।

गमों से दूर रखती है ,उसे आनै नहीं देती ।

गम चाहे वो जैसा हो, खटकने पास न देती ।।

यह बरदान है भेजा , खुदा ने मय औ मयखाना ।

भला वह मर्म क्या जाने , जो पीना ही नहीं जाना।।