उठती रहती बातें मन में ,विलीन उसी में हो जाती।
सागर की लहरों ही जैसी ,लय भी उसमें हो जाती ।।
लहरें छोटी तो बड़ी कभी ,पर लौट नहीं जाती ।
मन में जोश उपजता रहता, स्वयं लुप्त होती रहती ।।
जानें तट को क्या कर देगी ,जैसे उन्माद लिये आती।
काफूर स्वयं कहाॅ हो जाती ,यह भी नहीं पता चलती।।
उठना ,गरना ,लय हो जाना,उनकी यही नियति होती।
जाने कब ,युगों-युगों से , क्रिया यही होती रहती।।
हृदय विशाल सागरसे ज्यादा,ब्रह्माण्ड समां भीसकता।
कितनी चीजें लय है उसमें, उसे कौन कह सकता ।।
सारी चीजें लय है इसमें ,जो भी ढ़ूंढ़े मिल सकता ।
कहाॅ पड़ी है चीजें कैसी ,ज्ञान जिसे हो सकता ।।
तेरी प्रकृति बहुत बड़ी , अथाह है तेरी दुनियाॅ।
भरे पड़े न जाने कितनी, कहाॅ कौन सी निधियाॅ।।
सारी चीजें लय है तुममें, ज्ञात उसे करना पड़ता ।
समझ लियाजो इनकी बातें,सबकुछ उन्हें सुलभरहता।
धन्य प्रकृति हो तुम कितनी, धन्य तुम्हारी है रचना।
कितनी चीजें तुम दे रखी,है मुश्किल तुझे समझ पाना।
हो तुम अथाह ,तेरा थाहनहीं,संभव क्या थाह लगाना?
नहीं किसी ने थाहा अबतक,आसां ;असंभव कहदेना।
जो भी हो दुनियाॅ निर्माता, नमन उन्हें मैं करता ।
श्रद्धा का सुमन,चरण पर उनके, मैं अर्पित हूॅ करता।।