जहर का घूॅट भी पी कर, कभी चुप रहना पड़ता है।
देख सच्चाई का दबते गला,मौन हो सहना पड़ता है।।
इस जालिम दुनियाॅ में, बहुत कुछ देखना पड़ता ।
अनिच्छा से किसी का जुर्म ,सहन भीकरना पड़ता है।।
धिक्कारती,जब कभीआत्मा,समझौता करना पडताहै।
बहुत ही मुश्किलें आती , हल तो करना पड़ता है।।
कुछ भी करने के कबल, ख्याल कुछ करना पड़ता है।
समय और परिवेश पर , ध्यान तो देना पड़ता है ।।
बहुत प्रभाव पड़ता है, समय ,परिवेश का सब पर।
समय अनुकूल या प्रतिकूल को,समझना पड़ता है।।
अच्छी बात लोगों के, मन को नहीं भाता कभी।
उस माहौल में चुपचाप तो,रहना ही पड़ता है।।
महत्व मिलता नहीं हो आपकी, बातों को जहाॅ ।
वहाॅ चुपचाप रहना ही ,बेहतर जान पड़ता है ।।
बुराई देखकर भी मौन रहना, अनुचित कही जाती।
असर पड़ता नहीं उस पर ,तो कहना ब्यर्थ होता है ।।
समय अनुकूल होता है, तो सारा काम बन जाता ।
असामयिक कुछ भी करें, बेकार होता है ।।
समझौता परिस्थितियों से,कभी करना ही पर जाता।
अनिच्छाबस कुछ काम मनुज को,करना पड़ता है।।
चुपचाप करना इन्तजार, भी कभी अच्छा ।
हथौड़ा गर्म लोहे परपटक,कामतो करनाही पड़ता है।।