दीदार तेरा जब हुआ.

बाण कुछ देखा निकलते , नयनों की तेरे तुणीर से।

आया तो दिल के पास ही,गुजरा जिगर के करीब से।।

दर्द करता जा रहा ,कमता न कोई निदान से ।

मुक्ति न दिल भी चाहता,उनकी बनाई चिह्न से।।

यादें तुम्हारी कौंधती , सीने में दिखते दाग से ।

आती बड़ी रफ्तार से,जाती न उस रफ्तार से।।

यह सितम तुमने निकाला,नयनोंके अपने कमान से।

यह बाण जीने तो न देती, मरने न देती चैन से ।।

क्या करूं मै इस चुभन को,जुड़ गयी मेरे प्राण से।

ऐसा अनोखा दर्द दिया, अपने नयन के बाण से।।

जाने तड़प में क्या मजा , जाने जुड़ा किस तार से।

यह दर्द भी आसां नहीं, जुडा जो मेरे यार से ।।

चिन्ता नहीं मुझको कभी , धो हाथ दूॅ मैं प्राण से।

होना है जो , होकर रहेगा ,किसे क्या पड़ी मेरे प्राणसे।।

दीदार तुमसे जब हुआ, सूरत बसी मन में मेरा।

ओझल नही पलभर कभी,हो पाई है मन से मेरा।।

दिल की दनिया पर मेरी , है अकेला राज तेरा।

तेरे सिवा कोई नहीं ,अखंड सारा राज तेरा ।।

सिवा तुम्हारे और कोई, होगा न कोई दूसरा।

पर्याय भी शायद मिले, इस जहां में दूसरा ।।

मैं नमन करता उसे, जिसने बनाया है तुझे।

लगता है नयनों कि ये तारा ,बस यही केवल मुझे।।