इस भौतिकताकी दुनियामें,कल क्याहोगा क्या जाने?
जहाॅ नैतिकताही लुप्तहुई,उस जगमें क्याहो क्याजाने?
जहाॅ ईष्टही दौलत होजाये,उस जहाॅमें क्याहो क्याजाने
इस नैतिकता से हीन जहाॅका,सिर्फ विधाता ही जानें।।
सब बनें दीवाने दौलत के, प्राय: सबके सब यह मोनें।
यहां मित्र न कोई,सखा नकोई,नकोई भाईबहन जाने।।
बस दौलत ही सबसे उत्तम,बस सारी दुनियां यहजाने।
सर कलम किसीका कर देगें,मकसद दौलत पानाजानें।
करेंगे क्या दौलत इतनी, उनसे पूछें वे ही जानें ।
बस एक हवस केवल उनकी,कुछअन्य नहींवेभी जानें।
इसके चलते ये सब करते,कर्म-कूकर्म भी न जाने।
मात्र हवस मकसद उनका,हासिल बस करना वेजाने।
भोतिकता की दुनियामें,मानव मस्तिष्क विकृत जाने।
यहाॅ मौतभी बिकती दौलतसे,जरा ध्यानकरें खुदजाने।
ऐ ऊपरवाले तुम्हीं बता ,क्या करना हमें तम्ही जाने।
भौतिकता की दुनिया में,कल क्या हो बस तुम जाने।।