धरा ही कर्म-स्थल है.

पाॅव जब जब थिरखते है ,घुंघरूयें खनकने लगते ।

सारी भंगिमाएं ,भाव दिल का, स्पष्ट हो जाते ।।

श्रोता झूमने लगते , दिशायें झूम खुद उठते ।

बहारें मस्ती में आकर ,उनपर फूल बरसाते।।

पवन मस्ती लिये आता , लोग मदमस्त हो उठते।

कलियां फूल बन जाती , भॅवर उनपर लुभा जाते ।।

तितलियाॅ रंग-बिरंगों की ,चुहलकद्मियां करती ।

घुंघरुओं की मधुर आवाज, उसमें ताल भर देती।।

धरा पर स्वर्ग खुद आकर मस्तियां, खुद लुटा देता ।

घुंघरुओं की मधुर आवाज ,उसका तान सा लगता ।।

मही पर स्वर्ग का सारा नजारा ,स्पष्ट नजर आता।

कहीं पर भी धरा जन्नत से, कम नहीं लगता ।।

धरा ही कर्म-स्थल है, यहीं सब कर्म हैं करते ।

यहीं जो कर्म वे करते ,उसीका फल मिला करते।।

पाॅव यूॅही थिरकते तो नहीं , इसमें कला होता ।

घुंघरुओं से निकलती हुई, ध्वनियों में कला होता।।

थिरकने की कला में जो कोई,माहिर हुआ करते।

समझ लें तो वही युग का , नटराज कहलाते ।।

गुण नटराज का उनमें, भरदम भरा होता ।

उनकी कृपाका पात्र ही,यहसब किया करता।।

नृत्य आसान तो होता नहीं,बड़ा ही गूढ़ है होता ।

कला तो हर किसी के बूते का,हरगिज नहीं होता।।

नटराज अपना गुण तो, सब लोग में देता ।

उजागर कोई कर देता , किसी में गुप्त रह जाता।।

हमने ऐसा देखा है.

गिरते किसी को आसमान से, हमने जमीं पे देखा है।

उठे गिरकर,उठ पुनः गिरे, ऐसा भी नजारा देखा है।।

गिर जानातो कोई बातनहीं,गिरताजो वही सम्हलता है।

गिरा नहीं जीवन में जो,सुख का रसउसे न मिलता है।।

बहुत लोग जीवन में अपना, कुछ करके दिखलाये हैं।

बहुत कठिनश्रम जीवनमें कर, खुदको स्वयं बढ़ाये हैं।।

बहुत यातना सहकर मग में, पहुंच वहाॅ तक पाये हैं।

बाधाओं से लड़े भीड़े हैं , तब मंजिल को पाये हैं।।

संघर्ष किया जीवन में पहले , झुके नहीं बाधाओं से।

कठिनाई को गले लगाया,जूझे मगके अवरोधों से ।।

अटल लगन,करनेका माद्दा,जीवनके हर पलमें अपना।

रोम-रोममें भरा जोशथा,कुछकर दिखलाने कासपना।।

बना दीवाना अपने धुन में,मुड़कर कभी न देखा जो।

गण्तब्य मिला जीवनमें उसको,फिरभी चैनन पाया जो।

बढ़ते गये निरंतर पथ पर,जिस पथ का कोई छोर नहीं।

दिन-रात लडे बाधाओंसे,अकेला संग कोई और नहीं।।

उफ तक नहीं किया उसने,बाधा को गले लगाया था।

संघर्ष किया जीवनमें हरदम,तब इतना बढ़ पाया था।।

बिना किये मिलता क्याजगमें,श्रम करता वहपाताहै।

मुख्य धाराको छोड़ दियाजो,अलग थलग होजाता है।।

जीवन में आगे बढ़नाहो ,बाधाओं से लड़ना सीखो।

चरित्र तुम्हारा होनिर्मल,अविरल आगे बढना सीखो।।

नहीं सका है रोक अभीतक, किसी हिम्मत वालों को।

अवरोध भी सहयोगी बन,करता है मदद दीवाने को।।

चढते जमींसे आसमान तक, हमने किसीको देखा है।

बिश्वास करें या नहीं करें , हमने पर ऐसा देखा है।।