कोई क्या जाने.

इस भौतिकताकी दुनियामें,कल क्याहोगा क्या जाने?

जहाॅ नैतिकताही लुप्तहुई,उस जगमें क्याहो क्याजाने?

जहाॅ ईष्टही दौलत होजाये,उस जहाॅमें क्याहो क्याजाने

इस नैतिकता से हीन जहाॅका,सिर्फ विधाता ही जानें।।

सब बनें दीवाने दौलत के, प्राय: सबके सब यह मोनें।

यहां मित्र न कोई,सखा नकोई,नकोई भाईबहन जाने।।

बस दौलत ही सबसे उत्तम,बस सारी दुनियां यहजाने।

सर कलम किसीका कर देगें,मकसद दौलत पानाजानें।

करेंगे क्या दौलत इतनी, उनसे पूछें वे ही जानें ।

बस एक हवस केवल उनकी,कुछअन्य नहींवेभी जानें।

इसके चलते ये सब करते,कर्म-कूकर्म भी न जाने।

मात्र हवस मकसद उनका,हासिल बस करना वेजाने।

भोतिकता की दुनियामें,मानव मस्तिष्क विकृत जाने।

यहाॅ मौतभी बिकती दौलतसे,जरा ध्यानकरें खुदजाने।

ऐ ऊपरवाले तुम्हीं बता ,क्या करना हमें तम्ही जाने।

भौतिकता की दुनिया में,कल क्या हो बस तुम जाने।।

रात नहीं, तो चंदा कैसा

जब लोग बहुत ऊॅचे हो जाते, नीचे वाले छोटे दिखते।

जरा आसमान में जाकर देखें, सबके सब बौने दिखते।।

हो जो जैसा, दिखता वैसा,वही नजर अच्छी होती।

हो जैसा पर दिखे न वैसा, दृष्टिदोष यही होती।।

आज जमाना ऐसा है, नजरें धोखा खा ही जातीं ।

होता कुछ, है नजर कुछ आता,अक्सर भूल यही होती।।

किसके अन्दर क्या है बैठा,नजर कहाॅ किसी को आता।

बाहर से है जैसा दिखता, कहाॅ वही भीतर होता।।

अंदर-बाहर एक हों, ऐसे लोग बहुत कम होते।

अंतर्मन में कचरा भर, बाहर से अच्छे दिखते।।

लोग बहुत ही विरले होते, देख नजर जो भाप सकें।

अन्दर है क्या राज छिपा, देख नजर से जान सकें।।

छोटा कौन ,बड़ा कौन है, वक्त-दशा का होता फर्क ।

कितने बड़े-बडों का इसने, कर डाला है बेड़ा गर्क ।।

सब का अलग नजरिया होता, सोच सबों का अपना होता।

महत्व सबों का अलग-अलग, वक्त सबों को देता रहता।।

जहां पर लोग बड़े होते, मान न छोटों का होता।

लघु अगर होता न कोई, बड़ा कौन कैसे होता!!

तुलना ही बड़ा बनाता है, तुलना ही छोटा कर देता ।

तुलना नहीं हुए होते, तो कौन बड़ा या छोटा होता!!

इक-दूजे के पूरक दोनों, एक नहीं तो दूजा कैसा!

महत्ता में दोनों समान, गर रात नहीं तो चंदा कैसा!!