भेंट ,स्तित्व का अपना , किसी को स्वयं कर देना ।
सप्रेम ,समर्पण जिंदगी, उनपर किये देना ।।
यही है मंत्र मानव का , कहाॅ कोई जीव यह करता?
विभक्त तो करता यही , वरना फर्क क्या रहते ।।
मानव श्रेष्ठ सारे जीव में , क्यों कहा जाता ?
यही जो गुण भरे उसमें , जिससे श्रेष्ठ कहलाता।।
प्रकृति ने ही बनाई तो , अनेकों जीव धरती पर ।
मानव से भी बृहद खाफी ,भेजी शक्ति भी भरकर।।
अपनी बुद्धिबल से ही, मानव विजय पाया है।
यही बल तो मनुज को श्रेष्ठ ,मानव बनाया है।।
अपने ज्ञान से मानव , कुछ ऐसा बना लेता ।
शक्तिशाली जीवों को उसीसे ,बस में कर लेता।।
अपने पूर्व मानव का , बहुत एहसान है हम पर।
बहुतसा झेलकर खुद यातना,बहुतकुछ गयेहमे देकर।।
क्रम चलता गया ,बढ़ती गयी, फिर जिंदगी अपनी।
अनवरत हम किये कोशिश,बढ़ा ली बुद्धि भी अपनी।।
पर कुछ दुष्ट-बुद्धि भी, हम्ही में आ गयी चुपके ।
दीमक सा समा गये घुन ,कुतरने लगे छुपके ।।
हमें बर्बाद करने में , वह लग गया दिन-रात ।
शातिर ज्ञान से अपने ,किया कूकर्म की ही बात।।
पड़ोसी चीनियों सा लोग भी , हो गये पैदा ।
मानव रूप में दानव , अनेकों हो गये पैदा ।।
परिणाम उसका तो सभी को भोगना होगा ।
मॅजधार से बाहर , सबों को खींचना होगा।।