खतायें कौन करता है, सजायें कौन है पाता ।
सदा नजरों के तेरे सामने,यह क्या हुआ करता।।
तुम्हें सब कुछ पता रहता, किया तेरा ही सब रहता ।
सारी गूढ़ बातें भी , तेरी नज़रों में ही रहता ।।
छिपाना चाहता तो लोग,पर छिप कहाॅ पाता ।
आपके कैमरा में दृश्य सारा , कैद हो रहता ।।
सब कुछ जानकर, दोषी किसीको क्यों बना देता?
गैरो के गुनाहों को , किसी के सिर पे मढ़ देता ??
करने न्याय जो बैठा , वही अन्याय कर देता ।
पावन तराजू न्याय का , अपावन बना देता ।।
द्रष्टा कोई तो इसपर , सदा नज़रें गड़ा रखता ।
फिर भी गलत कोई फैसला, कैसे सुना देता ??
पावन न्याय की कुर्सी को, गंदा वह किये देता ।
जघन्यतम काम यह कितना , फिर भी किये देता।।
आज कानून का रक्षक,बना जिसको दिया जाता ।
वही कानून का भक्षक , खुद को क्यों बना लेता ??
पावर की नशा मस्तिष्क में,जबभी छा कभी जाता।
कूकर्म करने को उसे , उद्यत किये देता ।।
दुरूपयोग शक्ति का ही , पावर कहा जाता ।
जन कल्याण खातिर गर करे,कर्तव्य बन जाता।।
कर्तव्य और अधिकार में, तो फर्क बस इतना ।
समझने की नजरिया आपकी,गौड़भी आपको करना।।
कुरान गीता की कसम तो , लोग खा लेता ।
जरा भी झूठ कहने में ,हिचक थोड़ा नहीं करता।।
मानव किस हदों तक गिर चुका,कोई कह नही सकता।
हद है भी कहीं, या है नहीं ,यह कौन कह सकता ??