मानवता का दुश्मन.

विज्ञान अधूरा बहुत आजहै,इसपर करना ब्यर्थ नाजहै।

बहुत दंभ थे भरते तुमपर, आती होगी शर्म आज है।।

करोना का निर्माण कराकर,इठलाता फिरता हैखुदपर।

घिरा स्वयं भी चक्रब्यूह में,अपनों गैरों की जानें लेकर।।

मानवता का तुम शत्रु हो,खुद को बुद्धिस्ठ भी कहतेहो।

लाशोंका अम्बार लगाया,क्यों बुद्धधर्म बदनाम कियेहो।

बिच्छू का मंत्र न आता पूरा,चले खेलने बिषधरके संग।

रे मूढ़ तेरी बुद्धि कच्ची,तूं कर दी सबको रंगों में भंग।।

मानवता का दुश्मन बन गये,हैंकड़ी तेरी कमी नहीं।

कितनों की जानें ले ली तूं,फिर भी दंभें गयी नहीं।।

मानवनहीं अमानव होतुम,हिंसक पशुओं सेभी बदतर।

मानव को बर्बाद किया तुम,कैसा तुम निकला बर्बर??

जिसने तुमको जन्मा होगा,खुद कितना शर्मीन्दा होगी।

तेरी करनी पर मां भी तेरी,सबसे सुनती निंदा होगी ।।

हाउस अरेस्ट सबको किया, नहीं किसी को छोड़ा।

लाचार हुए सब बैठ गये, तूं गर्क कराया बेड़ा ।।

अपनों कितनें का जान लिया, फिर भी दर्द न तुमको ।

इस दुनिया में रहने का,अब हक भी नहीं है तुमको ।।

तेरे पापों के बोझों को,धरती अब नहीं सहेगी ।

बर्दास्त नही होती अब उनको, खुद कुछ कर बैठेगी।।

जा सम्हल अभी भी ऐ पामर,घृणित पापों से दूर रहो।

बुद्ध धर्म का अनुयायी हो, बुद्धों कोमत बदनाम करो।

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