उल्टा-पुल्टा काम भी , कभी कर देता विज्ञानी ।
राजनितिज्ञ करता रहता ,इनपर अपनी मनमानी।।
वैज्ञानिक निज खोज में , लगाये रहता ध्यान ।
नयी -नयी चीजों का है , करता अनुसंधान ।।
सिवा खोज के अन्य उसे , कुछ नहीं कभी है दिखता।
अपने कामों में सदा लगाये ,मन-मस्तिष्क को रखता।।
कभी कभी तो लोग इन्हें , पागल तक कह देता ।
इनको तो अधिकांश लोग , समझ नहीं है पाता ।।
खोजों में ही डूबे रहते , सदा लगाकर गोते ।
काफी गहराई तक जातै, तब ही कुछ ला पाते।।
राजनीति की गहराई में, नजर नहीं वे देते ।
यही लाभ ले राजनीतिज्ञ, उनसे उल्टा करवाते ।।
उल्टा-पुल्टा का एक उपज ,’था दिया करौना नाम’।
मानवता का बन दुश्मन,कर दिया घिनौना काम ।।
जाने उनके चक्कर में पड क्यो, ऐसी चीज बनाई।
लाखों लोगों को उसने तो , मौत की नींद सुलाई ।।
आज विश्व उनके कुचक्र में,ऐसा फंसा हुआ है।
त्राहिमाम का शोर अब , हर ओर मचा हुआ है ।।
यह मानवता का शत्रु, सुन सुन हंस कहीं रहा होगा।
मौतों का माला गूंथ -गूंथ ,गले में पहन रहा होगा ।।
नहीं बख्श पाया अपनों को ,ऐसा नीच अधम है ।
अपने बच्चों तक को न छोड़ा, यह सर्पों से न कम है।।