शराब-बन्दी.

शराब-बन्दी करा कर तूं, करना क्या चाहती?

कुल्हाड़ी अपने पैरों पर, क्यो मारना चाहती ??

ये कैसी सरकार है, कुछ समझना न चाहती ।

अपना रेभन्यू पर क्यो दुलत्ती, खुद लगाना चाहती??

बढ़ गयी देशी शराब की, राज्य मे डिस्टीलरियां ।

अवैध शराबों की चल गयी,अनेकानेक दुकानदारियां।।

महुआ और गुड़ की, ब्यापार काफी बढ़ चली ।

थोड़ी खाई थी हिचकोलियां,फैक्ट्रीयां फिर चल चली।।

पुलिस , थानेदारों की, गोटी लाल हो गयी ।

भर गयी तिजोरियां, मालोंमाल हो गयी ।।

पी-पा कर लोगों का, जत्था निकलता है ।

ये पुलिस वाले उससे भी ,माल खींच लेता है ।।

हो आम जनता बिवस,सुनती पियक्कड़ों की गालियां।

डगमगाते पांव उनके , जुबां निकालती गालियां ।।

सुनने को यही आमजन , मजबूर सा है हो गये।

राज्य का पैसा गया, पर छुटेरे सारे चर गये ।।

शराब- बन्दी ठीक होगी , जब खाकीधारी ठीक होगें।

अन्यथा यह घोषणा, मात्र बना एक ढ़ोग होगें ।।

दृढ़शक्ति है अगर , सचमुच चाहते हैं रोकना ।

नियंत्रण करेंइन खाकियों पर ,आसान फिर है रोकना।।

इन खाकियों के साथ में,खादी सुधर भी जाये गर।

तब तो सभी बिमारियां,,जायेगे मिट एक बार ।।

जड़ तक दवा पहुंचे नहीं,ईलाज फिर बैकार है ।

यों काम है थोड़ा कठिन,पर कर सकती सरकार है।।