पर बोल कर भी क्या?

अपनी ब्यथा बोलूँ किसे ,पर बोल कर भी क्या ?
दर्द-ए^दिल सुनाकर क्याकरूँ,सुनना चाहता कोई क्या??

रखना इसे दिल में छिपा,मुश्किल नहीं है क्या ?
ब्यथा को बोल कर सरेआम करना,है उचित भी क्या??

व्यथा अपनी छुपाने के लिये,सबलोग हैं कहते ।
ढिंढोरा पीट देना स्वयं भी,अनुचित नहीं है क्या??

कहते लोग,गर हैं बाँटना,तो बाँट लो खुशियाँ ।
खुशियों से लगे सब झूमने,,कहना इसे पर क्या??

सहानुभूति के दो शब्द, क्या अनमोल हैं होते?
कीमत लगा कोई मोल ले, ये हो सकेगा क्या ??

दौलत की तराजू से,नहीं कोई तौल है सकता।
चाह कर भी तौलना, सम्भव इसे है क्या ??

सहानुभूति के दो शब्द की ,कीमत बड़ी होती ।
संसार की हर चीज से, ज्यादा न होती क्या ??

करे प्रयास चाहे लाख ,वापस कर नहीं सकते ।
धन,दौलत सभी दे कर, बराबर कर सकेगें क्या??

कृतज्ञता तो शब्द बस , दस्तूर बन कर रह गया।
असर वक्ताके मनपर और अधिक,होता कभी है क्या??

अपनी ब्यथा को दाब ,औरों को हँसा रखना ।
बड़े बिरले मिलेगें लोग ऐसे ,सच नहीं ये क्या ??

जीवट से भरे ये लोग होते, जो काबिले तारीफ।
उचित सम्मान मिलना चाहिए ,जो मिल रहा है क्या??

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