सब तो खुद ही हैं दुखिया.

किसको दर्द सुनाऊँ अपना,सब तो खुद ही हैं दुखिया।
पूरी दुनिया भरी पड़ी है,हर ओर भरे दुखिया-दुखिया।।

देख पूछकर स्वयं लोग से,अधिकांश कहेगें मैं दुखिया।
इस मृत्युलोक में रहते जितने,सबके सब रहते दुखिया।।

माया का है यह मेला,जितनें दिखते,सबके सब माया।
कब आयेगें कब जायेगें, हरकत करती रहती माया ।।

कहते लोग दर्द घटता कह, लोगों को सुनाने से ।
पीडा़ कम होती थोडी कुछ,मरहम को वहाँ लगाने से।।

साथ समयके बदल गये सब,अब ऐसा कभी नहीं होता।
रगडेगें नमक उस घाव पर ,जिससे दर्द अधिक होता।।

दे दे अवसर ,दवा बोलकर,जहर की सूई दिला देगें।उसी दर्द के नामपर, काम तमाम करा देगें ।।

बोझ नहीं अब घटता है, कह कर इसे सुनाने से। बढ जायेगी आफत ज्यादा,अच्छा है चुप रह जानें से।।

बचाहुआ कमस्नेह बहुत,लोभ लालचने उसे दबोच लिया।
मानव के पावन मन पर इसने,अपना आधिपत्य किया ।

गलत कराने की प्रवृत्ति, मानव के मन में भर डाला ।
अतिपावन निर्मल मानव दिल,कोभी कलुषित कर डाला।

मानव को दानव कर डाला,उसका पतन करा के ।
मानव ही दानव बन जाता, नैतिकता अपनी खो के।।

भला बुरा कोई जन्म नलेता,आकर धरती पर बन जाता
रहता जैसा परिवेश में, असर उसी का पड़ जाता ।।

आ गयी उषा.

गयी निशा आ गयी उषा,सब दूर हुई अब अधिंयारी।
तम का अब साम्राज्य मिटा,पड़ी उषा उनपर भारी ।।

बिछा गयी थीअवनी तल पर,निशा चादर काली अपनी।
थे सबके सब ओझल उसमें,लिपटे,सिमटे सूरत अपनी।।

दूर हुई अंधियारी काली,तम का अवनी से राज हटा।
टिमक रहे थे तारे नभ में,उन तारों का साम्राज्य हटा।।

अवनी तल की ओझल चीजें, पड़ने लगी दिखाई।
मानों मिटगयी,दुख की घड़ियाँँ,सुख की घड़ियाँँ आई।।

प्रफुल्लित दिखते हैं सारे,प्रफुल्लित सब लोग लुगाई।
थके हुए जीवन मे फिरसे, नयी चेतना जग आई ।।

पुनः रग-रग में जीवों के,उत्साह नया जग आया ।
यौवन में कुछ करनें का जज्बा,फिर से है भर आया।।

निशा दिवस का क्रम सदा ,चलता ही जाता रहता है।
सुख-दुख जैसे मानव जीवन मे, आता जाता रहता है।।

निशा-दिवस का गमन आगमन,जितना जीवन में होताहै।
गिनती उसकी उस मानव का,उसका आयु कहलाता है।।

करना क्यों चिंता, निशा दिवस काउसे अविरल चलनाहै।क्षण प्रतिक्षण जो बीत रहा उसे, लौट नहीं आना है ।।

चला न जाये ब्यर्थ समय, ध्यान सदा यह देना।
हर पल का हो इस्तेमाल , गाँठ बाँध यह लेना ।।

उषा,मध्यान्ह,संध्या,निशा का,भी कोई ध्यान नहीं देना।
ये नामकरण मानव कर रखा,अपना कर्म किये जाना ।।

कर्म-सुत्र आवद्ध सूर्य का, नियम बना होता है ।
नहीं पल भर अपनें पथ से, वह विचलित होता है ।।

मैं अदना टिमटिम तारा

तुम हो सूरज आसमान का,मैं अदना टिमटिम तारा।
रौशन सारी दुनिया तुमसे, तुलना तुम से क्या मेरा।।

जीवन का आधार तुम्हीं हो,सचर अचर सबका प्यारा।
भेदभाव के बिना निरंतर, देते रहते सदा सहारा ।।

सारी दुनियाँ रौशन तुम से, बिन तेरे छाये अंधियारा।
तू केन्द्र-बिन्दु अपनें मंडल का,संचालित है तुम से सारा।

बिना तुम्हारे सभी कल्पना, रह जाये केवल कोरा ।
बिन तेरे साकार न होगा, जीवन का कोई सपना ।।

ऊर्जा का संचार सबों मे , तुम से ही होता पूरा ।
बिना तुम्हारे नहीं करेगा, कोई भी इसको पूरा ।।

हो श्रोत तुम्ही सारी ऊर्जा का, संचालित तुमसे सारा।
नहीं पता है कौन नचाता, नाच रहा पर जग सारा।।

है कौन शक्ति अदृश्य, रहता जिसका सदा इशारा ।
क्याआवासहै सचही उसका,मंदिर^मस्जिद-चर्च-गुरुद्वारा।।

जो असाध्य है ब्यर्थ साधने,का क्यों है प्रयास तुम्हारा।
क्यों विभक्त खंडो में करना,क्या दुष्कर्म ये नहीं तुम्हारा?

ज्ञान अधूरा होता घातक, आज हाल है यही हमारा।
सब पर हो बर्चस्व हमारा, होता सतत प्रयास हमारा।।

होगा कितना खुद विशाल, हो लय जिसमें ब्रह्मांड हमारा।
कैद उन्हें कैसे कर सकता, मंदिर,मस्जिद, चर्च,गुरूद्वारा।

जो जी चाहे मार्ग पकड़ चल,जो दिल करे पसंद तुम्हारा।
किसे पड़ी है रोके तुमको, मर्जी तेरी, मग भी तेरा।।

अगर रची कोई प्रकृति, उसे शत बार नमन मेरा
एहसान चुकाऊँ कैसे तेरा, लदा है जो हम सब पर तेरा।।

जानें याद क्यों आती

जो बातें बीत गयी कब की,न जाने याद क्यों आती ?
गमों को भूल जो गये थे ,वे नस्तर क्यों चुभो जाती??

क्या थी दुश्मनी तेरी, मेरे दिल की सुकूनों से ।
दुखाते गर नहीं उनको,तो तेरी क्या बिगड जाती ??

कभी मैं चाहता हूँ जानना, मेरी क्या हुई गलती ?
समझ में कुछ नहीं आती, आखिर क्या हुई गलती।।

कुरेदे क्यों चले जाते, परत उपर जो पर जाती ?
दुखे रग को मसल देते,तो पीडा़ असह्य हो जाती ।।

बढा़ देते उसे हद तक, हदें भी पार कर जाती ।
सहन होगा भला कैसे ,समझ बिलकुल नहीं आती।।

किसे यह दर्द बतलाऊँ ,सुनेगा कोन ये पीडा़ ।
फुर्सत है किसे इतनी ,याद यह बात आ जाती।।

झिझकवस मैं नहीं कहता, उन्हें रोकूँ भला कैसे।
न कोई रास्ता दिखता ,गजब हालात हो जाती ।।

दबाये चाहता रखना ,बहुत मुश्किल दबानें मे.।
भय बिष्फोट करनें का , सताती ही सदा जाती ।।

जो बातें बीत गयी कब की,न जाने याद क्यों आती।
गमों को भूल जो गये थे,वो नस्तर क्यो चुभो जाती??

हो ,बता क्या तूँ?

कहता रहा कब से, थकता जा रहा हूँ अब ।
असर पडता नहीं तुम पर,कहीं बहरे नहीं तो तूँ??

आँखें देखती तेरी नहीं, क्या देख कर सब कुछ?न हिलती तक जुबाँ तेरी, –कहीं गूंगे नही तो तूँ ??

न सुनते आर्तनाद,चित्कार,उठे असकों के दर्द का जो
सब क्या लुट गयी संवेदना, पाषाँ नहीं तो तूँ ??

मानव आये हो बन कर,सबों से श्रेष्ठ जीवों मे ?
करनें कर्म श्रेष्ठों का सदा, कतराते नहीं तो तूँ??

बडा़ अजीब होता है जगत मे, जीव मानव भी ।
भरे विवेक होते हैं अधिक, बात को मानते तो तूँ??

मानव हो, रहो मानव,बनों मत अन्य चौपाया ।
महज कुछ ज्ञान सेहै श्रेष्ठता,नहीं क्या जानते हो तूँ??

दिखाओ कर्म कर ऐसा,जगत जो याद कर रखें।
युगों तक नाम लेते है, बात को जानते तो तूँ??

यों ,कूकर्म जो करते,उन्हें भी जानते सब हैं।
पर कुख्यात होते वे, उसे भी जानते हो तूँ।।

मानव सब नहीं जीते , केवल स्वयं की खातिर।
औरों के लिये कुछ लोग जीते, /मानते तो तूँ??

जो जीते और के खातिर,नहीं इन्सान वे केवल।
उन्हें इन्सान से उपर है दर्जा,मानते तो तूँ ??

नमन उसको सभी करते ,अपने सर झुकाते हम।
श्रद्धा का सुमन-माला,न उसको डालते हो तुम??

बूँद -पानी का

मैं तो एक बूँद हूँ पानी का,प्रताड़ना मत करना।
मुझे महज अदना समझ कर,अवहेलना मत करना।।

मैं से हम बनकर, सागर भी बना देते हैं हम ।
गौड़ कर मेरी बात का ,अवमानना मत करना ।।

ये विशाल सागर भी, मेरे ही दम-खम से है।
मुझे कम आँकने की जुर्रत,भूल से भी मत करना।।

ये मेरी धमकी नहीं, एक उचित मशविरा समझो।
महज प्रलाप करनें की , भी भूल मत करना ।।

हम में लय है, बड़वानल भी , पर गुमसुम ।
उसे उभारने की भी , चूक मत करना ।।

हम्हीं से जिन्दगी है ,सब जीव-जन्तु पौधों को ।
अपनी जिन्दगी को ,बेवजह बर्बाद मत करना ।।

मैं सुधा हूँ,पावन हूँ, जीवन देता हूँ सबको ।
गन्दगी डाल कर मुझ मे ,अपावन मत करना ।।

मैं हूँ तभी तो सब के सब हैं, चारों तरफ ।
मुझे बर्बाद कर ,खुद को , बर्बाद मत करना ।।

मैं कहाँ नहीं ,जल में , थल में ,पवन में हूँ ।
मुझे पृथक कर ,खुद को तुम पृथक मत करना ।।

मैं पंच तत्वों में एक तत्व हूँ, सृष्टि निर्माण मेंसहयोगी।
मेरा अनिष्ट करनें की चेष्टा, भूल कर भी मत करना ।।

मैं ही विद्युत देता हूँ सहायक बन ,तेरे विकास केलिये।
जान क्षमता मेरी , मुझे यूँ ही बर्वाद मत करना ।।

मैं तो एक बूँद हूँ पानी का, प्रताडऩा मत करना।
मुझे अदना छोटा समझ ,मेरी् अवहेलना मत करना ।।

वृद्ध-मानव.

ढली जवानी वृद्ध हुए कब,बात समझ नहीं आती है।
अंकल से बाबा जबबोले,कुछ बात समझ में आती है।।

जीवन की गाड़ी क्षण*प्रतिक्षण,आगे बढ़ती जाती है।पल^पल,क्षण क्षण,आयु जीवोंकी,घटती चलती जातीहै।

परिवर्तन पनका कब कैसे,हुआ न इसका ज्ञान किसीको
कबआता कबआ चल देता,नहीं तनिकभी भान किसीको

नहीं एहसास बदलने का,कभी किसी को हो पाता ।
शनै शनै सुनता लोगों से,बिश्वास न पर जल्दी होता ।।

समय बहत लगता दिल को,स्वीकार इसे करने मेंं ।
लगता कुठार का वार सहन,करनें की आदत होने में।।

ढेर सहनशक्ति लै कर,मानव धरती पर है आया ।
शायद इस शक्तिकारण ही, मानव श्रेष्ठ कहाया ।।

अहम रोल धीरज का होता,जो मानव में केवल होता।
वन्यप्राणी में धीर कहाँ, बस उतावलापन होता ।।

मानव था पर रहा नहीं अब,बातें थी ये कल की ।
कितनी दुनिया देख चुके,कितना दमखम है किनकी।।

बाँट रहे हैं जनश्रुति से,ज्ञान सभी जन जन में ।
नहीं हुआ था ज्ञान लिपी का,तब से जनजीवन में।।

बडे वृद्ध थे नित्य सुनाते,सन्ध्या को कथा कहानी ।
मनोविनोद बच्चों का करते, रहते दादा नानी ।।

‘फिर इसके बाद’की जिज्ञासा, बच्चों में आ जाती थी।
हर ज्ञान कथा में,डाल डाल,बच्चों मे दी जाती थी।।

जड़-धर मानव वृक्ष का , यही वृद्ध मानव होता ।
फल-फूल, कोमल डालों में ,अनवरत नया जीवन देता।

कहाँ नजर जाती दुनिया की,पेडों की जड़-धर पर।
नजर सदा जातीहै उनमें, लगे जो फूल फलों पर ।।

मधुर-स्वप्न.

मैं सोया था,नींद लगी थी,कोई आ झकझोड़ जगा डाला।
ले रहा लुफ्त था मधुर स्वप्न काआकर उसे मसल डाला।।

संजोये थे कितने सपनें, अरमान भरे थे सीने में ।
बडे सजा कर थे रखे,तब लुफ्त बहुत था जीने में।।

भरी रहेगी हरदम खुशियां,कभी त्याग न जायेगी ।
आयी है मेरे जीवन में, जीवन भर साथ निभायेगी।।

कभी त्याग कर चल देगी,नहीं कभी ऐसा सोंचा ।
मुख मोड़ विदा ले लेगी हम से,नहीं कभी ऐसा सोंचा।।

विधि का विधान तो नहीं जानता,कोई भी संसारी ।
रचा इसे जो जो स्वयं जानता ,होगी क्या गति हमारी।।

स्वप्न मधुर जो देखा करता ,है अपने जीवन में ।
हासिल उसे वही कर पाता ,है अपने जीवन मे।।

बाधाएँ आती रहती ,पथ रोक खडी हो जाती है।
अग्नि परीक्षा तभी मनुज का ,तत्क्षण हो जाती है।

सीना तानें भिड़ जाने को ,ठोके ताल खडा होता ।
बाधाएँ खुद घबडा उससे,खुद ही भाग खडा होता ।।

जो डरती उसे डराती दुनियाँ, यह दस्तूर पुराना है।
कमजोर मेमने को कुछ कहना,यह एकमात्र बहाना है।।

जो डरजाते वह मरजाते,फिर सोंच भला क्या करना है।
निडर रहो ,सत्कर्म करो, सन्मार्गों से चलना है ।।

^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^-