(क)
ज़ज्बात मे बहकर कभी , कुछ भी न कीजिए।
कुछ वक्त मन को दीजिए , और सोंच लीजिये ।।
हड़बड़ का लिया फैसला , गड़बड़ हुआ करता ।
यह ध्यान सदा दीजिए, मत चूक कीजिए ।।
(ख)
याचक से तो दाता होना , सर्वदा उत्तम होता ।
दाता का हाथ सदा ही उपर, याचक का नीचे होता।।
महत्व सदा दाता का होता ,याचक गौण सदा होता ।
सम्मान सदा पाता यह , याचक तो बस याचक होता।।
(ग)
व्यक्तित्व बड़प्पन से होता, दौलत से कभी नहीं होता ।
सम्मान बड़प्पन दिलवाता ,दौलत से सिर्फ नहीं मिलता।।
दौलत के साथ बड़प्पन हो , तो फिर उसका क्या कहना।
‘सोने पे सुहागा ‘बोला जो भी , अक्षरशः सच लगता ।।