हो नहीं सिर्फ तुम एक सेनानी, स्वतंत्रता के तूँ बीर सपूत।
गर्व देश करता है तुमपर. थे हृदय तेरे कितने मजबूत ।।
ऐ बीर भगत सिंह नतमस्तक हो, नमन तुझे करता हूँ ।
श्रद्धा का सुमन मैं नित्य तेरे ही, चरणों पर धरता हूँ।।
तुझे प्रत्यक्ष नहीं देखा ,तस्वीर देख ही पाया हूँ ।
ऐ बीर माँ भारत का ,मैं दिल में तुझे बसाया हूँ।।
जब देशभक्ति की हो चर्चा, तुझे खड़ा सामनें पाता हूँ।
तेरे सागर सा गम्भीर हृदय में, बडवानल एक पाता हूँ।।
धधक उठा करती दिखती ,उन बडवानल की लपटों का।
कम तेज नहीं मुखडे का दिखता ,निकल रहे उन लपटों का।।
मूछें तेरी ललकार रही , जग जा ऐ बीर जवानों ।
कर दो छलनी सीना अरि का ,कोई रोके रुको ,न मानों।।
दुश्मन तुझे चढ़ा दी फाँसी ,तुम चढ़ गये हँसते-हँसते।
पर कर गये पैदा बीर अनेंकों, जो तुम सा ही दम रखते।।
तेरी कुर्वानी ब्यर्थ नहीं गयी , नया जोश भर डाला।
जो असमंजस में पड़े हुए थे,जगा उन्हें भी डाला ।।
तुमने भय पैदा कर डाला, अंग्रेजों के दिल में ।
भारतवासी जाग उठा तब,जगा जोश हर दिल में।।
असर तुम्हारी कुर्बानी का, ऐसा बैठा ऐसा अंग्रेजों में।
मन बना लिया अब छोड़ चलें ,सोंचा उन अंग्रेजों ने ।।
बापू को इसका लाभ मिला ,गोरों भी मौका पाया।
बापू को भारत देश सौंप , वतन लौट खुद आया ।।
मुक्त गुलामी से होना , तेरी कुर्बानी का फल है ।
था बृक्ष लगाया आपनें , मिल रहा मधुर हमें फल है।।
सिवा तुझे मै धन्यवाद के , दे ही क्या सकता हूँ।
तूँने उपकार किया हमपर , उसे भूल नहीं सकता हूँ।।