उठता है मन मेंं एक द्वन्द्व ,जब पलकें होने लगती बंद।
थकन महसूस तभी होती,चलता है पवन जब मंद-मंद।।
कब नींद कहाँ से आ जाती ,तन मन को मेरे सताने लगती।
पलकें स्वतः हो जाती बंद, खुमारी मुझ पर छाने लगती।।
आलस्य न जानें क्यों आता,लगता तनमन है थक जाता।
विवस मुझे करने लगता,ब्यवहार अरि सा कर देता।।
कुछ चाह रहा था मैं करना,मन की बातें लिपिबद्ध करना।
पर कहाँँ इसे कर पाता हूँ, कलम पकडे सो जाता हूँ ।।
कभी तो कलम छिटक जाती,ऊँगली की पकड़ ढीली होती।
तब दिल को चोट पहुँच जाती,अफसोस मुझे काफी होतीं।।
मैं फिरसे इसे उठाता हूँ ,प्रायश्चित मन में कर लेता हूँ।
उद्धत होता फिर लिखने मे ,पर कर कुछ क्या पाता हूँ।।
मन में इच्छा है जग जाती, जग कर बलवती हो जाती।
फिर नींद कहाँ है चल देती, दूर बहुत है हो जाती ।।
कलम जब जोर पकड़ लेती, निर्विघ्न वही चलने लगती।
सागर को मीठा करदेती, पर्वत को बौना कर देती ।।
सब झुक जाते उनके आगे, सर अपना नहीं उठा पाते।
योद्धा भी खड़े नहीं होते , घुटनें टेक सभी देते ।।
चारण जयकार मचा देते ,कलम की बातें पढ़ लेते ।
कलम की शक्ति है कितनी ,नजर से सब को दिख जाते।।
सोया को पुनः जगा देती , हारे को जीत दिला देती ।
रणछोड़ भागना चाह रहे को , फिर से वापस लौटा देती।।
शक्ति कलम में है इतनी , नहीं एटम बम में जितनी ।
तुफान खडा करवा सकती ,कुछ और अधिक दमभीइसकी।।
पर शाँत सदा यह रहती है , बेचैन नहीं यह दिखती है।
जा रहा किधर है जगवासी ये नजरें सब पर रखती है ।।
जब कभी जरूरत पड़ती है, दिग्दर्शन भी करती है।
है किधर जरूरत जाने की ,बातें भी उसकी करती है।।
गुणगान नहीं करती खुद का ,है खुद छोटा दम बहुत बड़ा ।
बड़ों का यही बडप्पन है, औरों को कहता सदा बड़ा ।।