ये जिंदगी है क्या?

होता कुछ कदम का फासला,बस जिन्दगी और मौतका।
पहला कदम तो जिन्दगी, अगला कदम तो मौत का।।

कोई अछूता तो नहीं, इस जिन्दगी का खेल से ।
सत्य बस केवल यही, अवगत सभी इस खेल से ।।

है जिन्दगी क्या मौत क्या ,देखते सब लोग हैं ।
रहस्य क्या है खेल का , जानता ना लोग है ।।

अज्ञानता का तम भरा ,डूबा हुआ संसार है ।
ढ़ूँढ़ा न कोई आजतक , कैसे बना संसार है ।।

प्रयास तो करते रहे , रहस्य से अनभिज्ञ रहे ।
गूढ क्या उसमें निहित , ज्ञात हम करते रहे ।।

पर बात सारी जानना भी,क्या बहुत आसान है?
गर्भ में उसके न जानें ,कितने पड़े विज्ञान है ।।

पर खोजनें में जो भिड़े ,खोज ही लेते उसे ।
आवरण को तोड कर ,अनावरण करते उसे ।।

दुनियाँँ बहुत ही है बडी ,हमलोग जितना जानते।
उसके भी आगे और क्या है ,कुछ लोग शायद जानते ।।

सृष्टि बनाई चीज सारी , पर हम जानते ही क्या?
कैसे बनाई है उसे , हम सोंचते भी क्या ??

इस जिन्दगी और मौत का ,रहस्य क्या हम जानते?
जो अटकलें है लोग का ,सिर्फ वही हम जानते ।।

विज्ञान का उतना पहुंच ,अबतक न हो पाया यहाँ।
पहुँचेंगे जानें कब तक , मालूम भी हमको कहाँ ।।

जरूर पहुँचेगें वहाँ तक, अटल ये बिश्वास है ।
रहस्य भी मिल जायेगा, दिल में भरा ये आश है।।

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