कैसा जमाना आ गया, गयी लुप्त हो कृतज्ञता ।
भर गयी सब लोग में , पूरी तरह कृतघ्नता ।।
दुर्भिक्ष मानों हो गया , कृतज्ञता का आज है ।
धोखाधड़ी ,चमचागिरी का ,हो गया अब राज है।।
कृतज्ञता को भूल सब , कृतघ्नता को मान देते ।
साध लेते स्वार्थ अपना , फिर नही सम्मान देते।।
सम्मान को तो छोडिये ,पहचान से इन्कार करते।
नजरों में आ जाते कहीं,नजरें उधर से फेर लेते।।
अति ब्यस्तता का ढोंग रच,’देखें नहीं’का पोज देते।
फिर भी अगर कुछ पूछडाला,अच्छा बहाना ठोक देते।।
सारा जमाना आज का, कृतघ्न है और हो रहे ।
मूढ का पर्याय अब, कृतज्ञता को कह रहे ।।
कृतज्ञता तो अब बेचारा ,बन यहाँ पर रह गया ।
कृतघ्नता का राज है अब ,श्रेष्ठ वही अब बन गया।।
कृतघ्न करते चापलूसी ,मक्खन लगाना जानते ।
मधुर बातें खूब करते ,लोग सब को फांसते ।।
फाँस कर उनलोग को ,मतलबों को निकाल लेते।
बाकी बचे कचरों को वे ,डस्टबीन में जा डाल देते।।
कृतज्ञता कृतघ्नता का ,दौड़ तो चलता रहा है ।
दुनियाँ बनी दोनों मिलाकर,साथ ही चलता रहा है।।
कृतज्ञता सदगुण भरा ,मानवता फलता यहाँ है ।
कृतघ्नता बिपरीत होती ,मानवता मरता यहाँ है ।।