मानव जीवन का कालचक्र, बिन रुके चला जाता है।
क्षण-प्रतिक्षण अपनें पथ पर,बढा़ चला जाता है ।।
शैशव बन धरती पर आते, बढ़जाते मानव बन जाते ।
बढ़ते जाना ही जीवन है ,रुक जाते जो मर जाते ।।
आयु बढ़ता है या घटता ,कहनें का ढंग अलग होता ।
कहता कोई घटता जाता ,कोई कहता बढ़ता जाता ।।
जो रौनक थाअब रहा कहाँ,गरिमा थी अब बची कहाँ?
हुई भग्न महल की दीवारें,गुम्बज थे उग गये पेड़ वहाँ।।
जब बृद्धावस्था आ जाता,बदल सभी कुछ है जाता।
जो था रौनक अब रहा नहीं,लाचार बनासा दिख जाता।
बचा एक संबल होता, याद जवाँ की रह जाती ।
उन मीठी मीठी यादों में ,पीड़ा ही मनकी मिट जाती।।
उन बातों में खो जाना है, अपनें दिल को बहलाना है।
नयी पीढ़ी का कौन भरोसा,हरगिज ना चोंच लगाना है।।
है कौन ठिकाना मित्र मिले,जिससे मन की बातें कहलें।
उससे तो यह उत्तम होगा,खुद कहलें,खुद ही सुन लें।।
गर साथ रहे जीवनसाथी, जीना तब होता आसान।
धन्य भाग्य कहलाओगे , समझे जाओगे भाग्यवान।।
अगली पीढी सम्मान करे,उनसे गर थोडा़ प्यार मिले।
तबतो किस्मतका क्या कहना ,क्योंना उसपर नाज करें।।
तब धन्यपुरुष कहलाओगे,खुद किस्मत पर इठलाओगे।
सम्मान करेगें लोग सभी, सुख का जीवन जी पाओगे।।