बूँद -पानी का

मैं तो एक बूँद हूँ पानी का,प्रताड़ना मत करना।
मुझे महज अदना समझ कर,अवहेलना मत करना।।

मैं से हम बनकर, सागर भी बना देते हैं हम ।
गौड़ कर मेरी बात का ,अवमानना मत करना ।।

ये विशाल सागर भी, मेरे ही दम-खम से है।
मुझे कम आँकने की जुर्रत,भूल से भी मत करना।।

ये मेरी धमकी नहीं, एक उचित मशविरा समझो।
महज प्रलाप करनें की , भी भूल मत करना ।।

हम में लय है, बड़वानल भी , पर गुमसुम ।
उसे उभारने की भी , चूक मत करना ।।

हम्हीं से जिन्दगी है ,सब जीव-जन्तु पौधों को ।
अपनी जिन्दगी को ,बेवजह बर्बाद मत करना ।।

मैं सुधा हूँ,पावन हूँ, जीवन देता हूँ सबको ।
गन्दगी डाल कर मुझ मे ,अपावन मत करना ।।

मैं हूँ तभी तो सब के सब हैं, चारों तरफ ।
मुझे बर्बाद कर ,खुद को , बर्बाद मत करना ।।

मैं कहाँ नहीं ,जल में , थल में ,पवन में हूँ ।
मुझे पृथक कर ,खुद को तुम पृथक मत करना ।।

मैं पंच तत्वों में एक तत्व हूँ, सृष्टि निर्माण मेंसहयोगी।
मेरा अनिष्ट करनें की चेष्टा, भूल कर भी मत करना ।।

मैं ही विद्युत देता हूँ सहायक बन ,तेरे विकास केलिये।
जान क्षमता मेरी , मुझे यूँ ही बर्वाद मत करना ।।

मैं तो एक बूँद हूँ पानी का, प्रताडऩा मत करना।
मुझे अदना छोटा समझ ,मेरी् अवहेलना मत करना ।।

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