कुछ ढ़ूँढ़ता हूँ मैं.

तन्हा कभी जब बैठ गुमसुम, सोंचता हूँ मैं ।

सदियों पुराने गाँव में, कुछ ढूँढ़ता हूँ मैं ।।

अपने गाँव की गलियां, कीचड़ से भरे नाले।

मिट्टी की बनी दीवार को ,भी ढूँढ़ता हूँ मैं ।।

घर के सामने बैठी, गोबर सानती दादी ।

उपले थापती दीवार पर भी, देखता हूँ मैं ।।

स्नेह से पुचकार ,खिलाती नित्य थी नवनीत ।

अनेकों वर्ष गुजरे,मिठास पर न भूलता हूँ मैं।।

टोले ,पडोसी भी सभी थे,अंग ही घर के ।

सदा कोई आपदा में साथ,उनको ढ़ूढ़ता हूँ मैं।।

शहरों की घुटन से ऊब कर,जब गाँव आता हूँ।

अपने गाँव मे अपनों को अक्सर ,ढ़ूढ़ता हूँ मै।।

यों तो गाँव का माहौल भी,रहा न पहले सा ।

तुलना पर नगर से कर तो,बेहतर देखता हूँ मैं।।

बची कुछ है कहीं गर संस्कृति,बस गाँव में थोडी।

कभी जब ढूँढता उनको, बदलते देखता हूँ मैं ।।

अपनी संस्कृति खोना तो,समझें खुद को है खोना।

उसे ले संग में अपनें , बढ़ना चाहता हूँ मैं ।।

बची है आज गाँवों मे, पुरानी संस्कृति अपनी ।

बदलनें का वहाँ प्रयास, होता देखता हूँ मैं ।।

बडी है भीड़ दिखती अब ,दुनियाँ के मेले में ।

इतनी भीड़ में खुद को ही ,अक्सर ढ़ूढ़ता हूँ मैं।।

नहीं पर ढूंढ पाया अबतलक,थकचूड़ भी हो गये।

नहीं पर हार मानूँँगा , यही पर सोंचता हूँ मैं ।।

सोचो क्या करवा सकती

क्यों समाजके चयनित प्रतिनिधि,क्या खबरतुम्हारी आतीहै
काले कुकृत्य की भरी कहानी,जन जन को मिल जाती है।।
खुद की ही नजरों में तुम,नहीं गिरे क्या होते हो ?
इस समाचार को देख नहीं क्या,पानी पानी होते हो??

क्या अंतरात्मा नहीं तेरी,धिक्कार लगाती है तुमको?
क्या करतूतें तेरी काली, शर्म न करवाती तुमको ??

कैसे उनकी धिक्कारें ,चुपचाप सहन कर लेते हो?
शर्म हया कुछ तो रक्खो,क्यों ताखे पर रख देते हो??

करके कितना बिश्वास तुम्हें, अपना मतदान किया होगा?
शरीफ समझ मातायें बहनें, तुमको चयन किया होगा??

शिला दिया क्या तूने उसका,कुछ तो सोंच थोडा देखो।
घृणित कार्य कैसा कर डाला,स्वयं सोंच कर तो देखो।।

कितनों का बिश्वास हनन का,तूँने पामर काम किया ?दिया भरोसा था सबको,पर उल्टा सब काम किया ??

नहीं करेगा माँफ तुझे, इस दुनियां की कोई अदालत।
चाहे कर ले कोई आकर,किसी लोक से कोई वकालत।।

तूँने तो सारी जगती का, सम्मान हनन कर डाला है ।
पूरी नारी जाती की ही ,चीर हरण कर डाला है ।।

एक नारी की चीर हरण, महाभारत करवा सकती ।
तो इतनों की चीर हरण, सोंचो क्या करवा सकती??

पावन सावन

सावन में पावन यमुना तट, गोपियन भीड़ लगाई।
चहल पहल तट पर फैला,क्या कान्हा बंशी बजाई।।

झूले क्यो दिखते हर ओर, नया जोश भर आई ।
गोपियन की कोई चुहलकदमी क्या,नया रंग कुछ लाई।।

गोपियन की टोली भी हरदम,इनको नाच नचाई ।
छुपकर पेडों की झुरमुट में, खेल खेलाती आई।।

कान्हा को सब बात पता है, गोपियन समझ न पाई।
सराबोर हो प्रेम के रस मे ,डुबती उतराती जाई ।।

प्रेम के रस मे राधा भींगी, भींगी सभी लुगाई ।
भींग गयी सब सखी सहेली ,कैसी समाँ ये आई।।

डूबे सब हैं कृष्ण के रंग में, नशा गजब की छाई।
तरणी तनूजा के जल में कुछ, नशा यही भर आई।।

सावन की निशा नशीली होती,मादकता क्या लाई ।
नर नारी क्या जीव जन्तु सब,प्रभावित हो आई ।।

बागों मे मोर मोरनियाँ थिरके,गाँवों में लोग लुगाई।
काली घटायें जल बरसा,भर दी सब में अंगराई ।।

गाँवों में चौहट रातों को, परती सदा सुनाई ।
नारी की खुशियां गीतों में ,परती झलक दिखाई ।।

ताल तिलैया नाले नदियाँ ,भी जल से भर आई।
कृषक के खेतों में फसलें भी,देखो कैसा लहराई।।

धन्य धन्य सावन का महीना, दूँ कैसे तुझे बधाई।
तेरे जल से ही धरती , ले पाई फिर अंगराई ।।

चार पंक्तियां स्वतंत्रता सेनानियों कोः

स्वतंत्रता के पूज्य सेनानी, शत नमन मेरा तुझे।

आजाद भारत को किये,कैसे चुकाऊँ ऋण तुझे।।

श्रद्धा सुमन अरमान का,अर्पित किये देता तुझे।

तिरंगा सदा लहरायेगा, ले शपथ कहता तुझे ।।^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^

आजादी के दीवानों, नमन तेरा

आजादी के दीवानो मैं, करता नमन शत् शत् तेरा।
तू जो दे कर गये चले,एहसान हम पर है तेरा ।।

नहीं है सकता भूल कभी,कुर्बानियों को देश तेरा।
माँ की मिट्टी के कण-कण पर,एहसान लिखा जो तेरा।।

दिल मेंं भरा हर भारती के, कूट कर अरमान तेरा ।
हम अडिग हैं,हम कभी, झुकने न देगें शान तेरा।।

तेरी दी गई कुर्बानियाँ, हम भूल सकते हैं नहीं ।
माँ तिरंगे का तेरा, अपमान सह सकते नहीं ।।

नजरें उठा कर देख तो, कितनें ख़ड़े तेरे ल़ाल हैं ।
तेरी आबरू रक्षण की खातिर, तैयार ये तत्काल हैं ।।

चिन्ता न कर तू, ऐ तिरंगा ,जब तक तेरा ये लाल है।
तेरा बाल बाँका सोचता ,उस भावना को काल है ।।

गर जरूरत पड़ गयी,सब कुछ फिदा तुझ पर मेरा ।
इस मुल्क की हर चीज तेरी,है फिदा तुझ पर तेरा ।।

जिन्दगी क्या चीज है, मैं हर्ष से तुझ पर लुटा दूँँ।
लुटाई पहले ज़िन्दगियाँ,गर हो जरूरत फिर लुटा दूँ।।

गम न करना, ऐ तिरंगा,लहरा खुशी से आसमाँ में ।
तुझे देखती है कितनी आँखें,गर्दन उठाकर आसमाँ में।।

शत् -शत नमन मेरा तुझे, है मेरा तूँ जाँ तिरंगा।
कुर्बान है सब चीज सारी,तुम ही मेरा अरमाँ तिरंगा।।

शहीद जो हो कर गये, आजाद हमको कर गये ।
संभाल कर रखे, बढ़े, श्रद्धांंजली उनको दिये ।।

यूँ चूक है सकती नहीं,सारी तेरी कुर्बानियाँ।
दो पुष्प गर स्वीकार कर,होगी बड़ी मेहरबानियाँ ।।