गरीबी ही तो जीवन का,बहुत बडा़ अभिषाप।
इससे बडा़ न होता दूजा,जग में कोई संताप।।
इस भौतिकवादी जग में,कद्र न होता ज्ञानी को।
आज लोग देते सम्मान, दौलतमंद अज्ञानी को ।।
लेतेहै लोग खरीद आज,दौलतसे कुछ विद्वानों को।
गरीबी की ठोकरसे आहत,होते से नौजवानों को।।
कूट कूट कर जोश भरा,रहता है मन मे जिनको।
जीवन में कर दिखलाने का,जज्बा भरा हो जिनको।।
पुलकित रग रग होते जिनका,कुछ करके दिखलाने को।
आवरण पुराना तोड़ निकल कर,बाहर आ जाने को।।
मग में आये बाधाओं से, बेधड़क जूझ जाने को ।
चाहे जैसे भी हो जाये, गणतब्य पहुँच जाने को ।।
झझा की बेगों से चल कर ये,अपना राह बना सकते।
अवरोधक बनकर जो आये, जाने कहाँ उड़ा सकते।।
सही दिशा मिल जाये तो,गणतब्य भी मिलना तय है।
दिकभ्रमित अगर हो जायें तो,भटकने का भी भय है।।
उतरती पर्वत से नदियों में,कोई अवरोधक आ जाता है।
कभी बडा़ कोई शिलाखण्ड,पथ रोक खडा़ हो जाता है।
कभीकभी भिड़ जाती नदियाँ,कभी अपना मार्ग बदललेती
स्वयं खोज कर राह सुगम, अपनी दिशा बदल लेती ।।
देख गरीबी आज खड़ी है, अवरोधक सा जीवन में ।
बुद्धिमानी से इसे निपट,बढ़ जाओ अपने जीवन में।।
निटपट न जाये जबतकमानव,गरीबी’नाम इस दानव से।
उद्धार नहीँ हो सकता तब तक,मानव का इस दानवसे।।
अति जरूरत की सब चीजें,मानव को मिलती जाये।
आयें हमसब संकल्प करें ,ऐसा ही एक देश बनायें।।
“गरीबी जीवन का अभिषाप.&rdquo पर एक विचार;