साधू -राज

फकीर देश के मंत्री बन गये, यू० पी० सी० एम०योगी ।
लगे बेचने दवा रामदेव, बन गये उनके सहयोगी।।

आशा राम बापू ने जम कर, ऐसा रास रचाया ।
अपने राजमहल में उसने, कितने ही गुल खिलाया।।

सम्मोहित हो गये देश के, सारे लोग लुगाई ।
जैसे वे कहते ,हम करते, बिन मीन-मेख के भाई ।।

युगों से ऋषियों ,मुनियों का ,होता आया सम्मान यहाँ।
पर नहीं संभाला राजकाज का ,खूद ही कभी कमान यहाँ।।

कलियुग का प्रभाव लगे,अब लोगों पर छा आया है।
अपने कामों को त्याग लोग, अन्यत्र ही नजर गड़ाया है।।

राज सुखो में डूब रहे हैं,मुनियों के सारे गिरोह ।
परपीड़ा क्या दूर करेगे, जिनमें कूट भरा हो मोह।।

साधू -संत हो धन के पीछे,सुना न होगा आप कभी ।
आकंठ इसी में डूब चुके हैं, पूर्ण रुप से आज सभी ।।

बदनाम किया उन लोगों को ,बर्बाद किया गरिमा उनकी।
गलत लोग मुट्ठी भर मिल,मिट्टी पलीद कर दी सब की ।।

धन भी दो, दौलत भी दे दो, सारे राज सुखों को दे दो ।
ऐशवर्य जहाँ के हैं जितने, सारे वैभव उनको दे दो ।।

भिक्षाटन कर करते थे, जीवन की भरपाई ।
धन संग्रह की मनोवृति कभी, उन्होनें नहीँ बनाई ।।

इस युग मे पहले जैसा ही, साधू नहीं रहे अब ।
बना आस्था पहले का,उसको भी खत्म किया अब।।

सेज काँटों से भरे होते हैं

सेज फूलों की भी , काँटों से घिरे होते हैं ।
जिधर भी देखिये, काँटो से भरे होते हैं ।।

दिखता नहीं तो दूर से , उनकी भरी मजबूरियाँ ।
देखें ,जरा करीब आ , बड़े मजबूर पड़े होते हैं।।

जिस्म नाजुक इतनी , फूलों से भी बहुत ज्यादा ।
कोमल मुलायम पंखुड़ी ,काँटों सा चुभन देते हैं।।

आती खुशबू यों, इन फूल के कोमल दलों से ।
नशा भी हौले से , मादक मदों सा होते हैं ।।

‘फूलों की सेज ‘ जो , ख्वाबों में डुबोये होते ।
उनके टूटते हैं ख्वाब जब , औंधे वे गिरे होते हैं ।।

ख्वाब तो देखते सब लोग है , नहीं ये चीज बुरी ।
नहीं जो देखते , पत्थर से सख्त होते हैं ।।

मगरूर क्यों होते , अपनें धन बल को देख कर ।
ये तो महज बालू के भीत हैं, ये खुद ही ढ़हे जाते हैं।।

गगन को चूमती अट्टालिकायें ,जरें भी कीमती पत्थर।
छलावा मात्र हैं सारे ,धराशायी हो ,लुप्त हो जाते हैं ।।

छलते जा रहे क्यों , इन छलाओं से , सब कुछ जानकर।
तोड़ डाल मकरजाल को, क्यों फंसे जाते हैं ।।

दूर से जब देखते , दिखते अति सुन्दर सभी कुछ ।
करीब जा कर गौर कर , सब बदलते हुए से होते हैं ।।

सेज फूलों की भी , काटों से घिरे होते हैं ।
जिधर भी देखिए , काँटे ही भरे होते हैं ।।

किया समय का जो पहचान

जीवन मेंं अपनें जिन्होंने, किया समय का हो पहचान।
सफल किया जीवन को अपना ,किया औरों का भी कल्याण।।

नहीं ध्यान जो रक्खा इनका, किया सदा उनका अपमान ।
समझ न पाया कीमत उनकी, समझा हीरा शीशा समान ।।

गुण-अवगुण का आभास न जिनको ,नहीं कर पाते हैं पहचान।
सब धन साढ़े बाइस पसेरी, करते ऐसा जैसे नादान ।।

जो कुशल जौहरी होते इनके, क्षण-क्षण का कर लेते उपयोग ।
जीवन में बढते वे आगे , हरलोगों का पाते सहयोग ।।

युग -पुरूष वही हैं कहलाते , खुद बढ़ते और बढा़ते हैं ।
सम्मान सबों को करते हैं , सम्मान सबों से पाते हैं।।

ये समय बडा़ है बलशाली, क्या से क्या किसे बना देता ।
राजा को रंक ,रंकों को राजा ,जब मर्जी उसे बना देता ।।

समय का जो करते पहचान ,ज्ञान भविष्य का कर लेते ।
क्या होना है आगे चल कर, भान भी इसका कर लेते ।।

ये बडे़ दूरद्रष्टा होते , आभाष दूर का कर लेते ।
वर्तमान को देख समझ कर , वाणीँ भविष्य का करदेते।।

जिसे दिखता हो बहुत दूर, रखते भविष्य का पूर्ण ज्ञान ।
वह दूरदृष्टि -मानव कर सकता ,हर लोगों का ही कल्याण।।

युगपुरुष कार्य यही करते , युग को ही राह दिखा देते ।
किन.राहों से चलना उत्तम , चल कर खुद राह बता देते ।।

समय को ब्यर्थ न जाने दें , जो गया नहीं वापस आता ।
सत्कर्मो में इसे लगा दें , जीवन सफल यहीं होता ।।

गरीबी क्या भला जानें

पले फूलो की सेज पर जो, गरीबी क्याभला जाने ।
बनी न माँ कभी जिसने , प्रसव का दर्द क्या जानें ??

रहे समवेदना जिनमें , वही महसूस कर पाते ।
जो पीडा झेल रखा हो , वही मतलब समझ पाते ।।

गरीबी चीज क्या होती , निकट जा कर जरा देखें ।
प्यार से बात कर थोडी , उनके दर्द तो समझें ।।

उनकी आँतरिक पीडा़ , तभी महसूस कर सकते ।
अपनी कल्पना में डूब , उनके दर्द समझ सकते ।।

बहुत गहराइयों में डूब कर, भी तो जरा देखें ।
गहराइयों में जा , उसे कुछ थाह कर देखें।।

जो उड़ते आसमाँ में , वे जमीं की बात क्या जानें ?
पत्थर चूभते भी पाँव में , परिंदे क्यों भला जाने ??

कृषक जैसे उगाते अन्न , दौलत मंद क्या जानें ?
कुत्ते घूमते हैं कार मे , जरा समझें ,जरा जानें ।।

ये कुत्ते भाग्यशाली हैं , गरीब इन्सान से ज्यादा ।
मिलती रोटियाँ इनको , मक्खन लगा ज्यादा ।।

कुछ तो नौकरें मिलते इन्हें, सेवा टहल करते ।
खिलाते हैं इन्हें खाना , भूखों स्वयं हैं रहते ।।

टपकते लार जिह्वा से , अधिकांश दोनो को ।
एक को आदतन ,पर एक को ,तो देख भोजन को ।।

कुत्ते को सुलाने को तो , गद्दे साफ मिलते हैं।
पर अपनें लिये तो मात्र ,बिस्तर टाट मिलते हैं ।।

कुत्ते पालनें वालों , गरीबी जानते भी क्या ?
गरीबी हैं किसे कहते , समझ आती तुझे क्या ??

किसी को प्यार देना चाहते , इन्सान को दे दो ।
बदतर जानवर की जिन्दगी से, बेहतर इसे कर दो ।।

खिलता हुआ गुलाब तुम (गजल)

फूल-सा नाजुक बदन, खिलता हुआ गुलाब तुम।
नाज तुम पे गुलिस्तां का, हँसता हुआ सबाब तुम।।

तुम बहारों में न केवल, बहार का सरताज तुम ।
चाँदनी महफूज तुमसे, इस धरा का चाँद तुम ।।

तुझे देख गम दफा होता, इस जहाँ का नूर तुम।
मायूसियत भी भाग जाती, हर दर्द की ही दवा हो तुम।

फेरे लगाये भ्रमर तेरे, फिर भी रही चुपचाप तुम।
मुख फेर कर नजरें बचा, करती सितम हर बार तुम।

नकाब में रहना सदा ही, होना न बेनकाब तुम ।
तुझे देख मर जायेगे खुद, इल्जाम लोगे ब्यर्थ तुम।।

तुझे क्या कहूँ ऐ दिलरूबा, करना नहीं इन्कार तुम।
दो जिन्दगी बर्बाद होगी, जो कर दिये इन्कार तुम।।