तेरा जो भी हो इरादा.

तुझे देखता हूँ जब कभी, मैं खो कहीं हूँ जाता।
कहनी है बात ढ़ेरों, पर भूल सब हूँ जाता ।।

तेरा इन्तजार में ही, सारा वक्त गुजर जाता ।
कितने गुजर गये हैं , मुझे होश भी न आता ।।

जब भी मिलोगी मुझसे, क्या क्या करूगा बातें ।
शिकवा भी क्या है करना बस सोंचता ही जाता।।

लम्बे समय से तुमसे , दीदार जब है होता ।
कुछ कह नहीं हूँ पाता ,सब कुछ ही भूल जाता ।।

सकोगी पढ तूँ पढ़ लो , आँखों की मेरी भाषा ।
उसमें तो सब लिखा है ,जुबां जो कह न पाता ।।

ये जिन्दगी भी मेरी, तेरे लिये बनी है ।
रखो या यूँ मिटा दो , तेरा जो भी हो इरादा ।।

जो कर दिया हवाले , अब सोंचना भी क्या है ।
मर्जी तेरी चलेगी , मेरा क्या बचा जो जाता ।।

तुझे देखता हूँ जब कभी मैं खो कहीं हूँ जाता।
करनी ही है बात ढेरों ,पर भूल सब हूँ जाता।।

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