एक ही परिवेश मेंं ,सब एक से होते नहीं ।
माँ-बाप की संतान सारी ,एक सी होती नहीं।।
एक ही शिक्षक पढाते,वर्ग में सब लोग को ।
एक रेकॉर्ड तोड़ते,एक उत्तीर्ण तक होते नहीं।।
(2)
संसार के इन्सान सारे, मनुज की संतान हैं।
उसने बनाया तो नहीं, हिन्दू-मुसलमान है ।।
जिसने मनुज को तोड़ डाला,मानव नहीं शैतान है।
इन्सान तो होने से रहा,हिंसक जानवर समान है।।
(3)
तोड़ा ही नही मानव को मानव, चूर चूर कर दिया।
मिलनें न पाये एक साथ,बिषाक्त ऐसा कर दिया ।।
भरता रहा ऐसा जहर, फिर कभी मिलनें न पाये।
प्रेम की मूरत को खुद ही,़़सत्यानाश कर दिया ।।
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