मुक्तक.

एक ही परिवेश मेंं ,सब एक से होते नहीं ।

माँ-बाप की संतान सारी ,एक सी होती नहीं।।

एक ही शिक्षक पढाते,वर्ग में सब लोग को ।

एक रेकॉर्ड तोड़ते,एक उत्तीर्ण तक होते नहीं।।

    (2)

संसार के इन्सान सारे, मनुज की संतान हैं।

उसने बनाया तो नहीं, हिन्दू-मुसलमान है ।।

जिसने मनुज को तोड़ डाला,मानव नहीं शैतान है।

इन्सान तो होने से रहा,हिंसक जानवर समान है।।

       (3)

तोड़ा ही नही मानव को मानव, चूर चूर कर दिया।

मिलनें न पाये एक साथ,बिषाक्त ऐसा कर दिया ।।

भरता रहा ऐसा जहर, फिर कभी मिलनें न पाये।

प्रेम की मूरत को खुद ही,़़सत्यानाश कर दिया ।।

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दिल के दर्द को मत कहिये.

दर्द-ए-दिल होता है, होने दीजिए, मत रोकिये।
झेलिये खुद ही उसे पर,भूलकर मत बोलिये ।।

कराहता है दिल कराहे , उनको अकेले छोड़िए।
बोलकर कर के भूल से भी,गैरों को मत बतलाइये।।

बड़ी बेदर्द है दुनियाँ, खुश हो जायेगी तेरी ब्यथा पर।
करेगें माखौल तुम पर,बेहतर हो,चुपचाप ही रहिये।।

दें संबेदना आँसू बहाकर, पर घडि़याली आँसू ही।
देखते जाइए सब कुछ नजरसे,पर चुपही रहा करिये।।

बोलिए मत बहुत यूँ ही,जरूरत से कभी ज्यादा।
ब्यर्थ बकवास करने से तो बेहतर,मौन ही रहिये।।

अधिक भी बोलना अच्छी नहीं, सेहत के लिये ।
बेवजह बात कोई करने से,बेहतर हो चुप ही रहिये।।

चुपचाप रहना भी , तपस्या एक बड़ी होती ।
होगा फायदा सब को ,समझ एक साधना करिए।।

किसी से याचना करना,कभी अच्छी नहीं होती ।
जल्दी माँगने का किसी से ,प्रयास मत करिए ।।

ये अजीब दुनियाँ है, अजीब हैं सब लोग सारे ।
समझ पाना नहीं आसान इतना,समझा किया करिये।।

महज एक कर्मशाला है, मानव के लिये दुनियाँ ।
नजर हरदम किसी का है, इसे भी मानकर चलिये।।

सी० सी० कैमरा से बडा़, प्रकृति का कैमरा होता।
रखे हुए हरदम नजर हैं, भ्रम में मत रहा करिये।।

जितना गुप्त रख चाहो, पर किसी के ही नजर में हो।
वह तो देख लेता सब , जैसे जो किया करिये ।।